मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-1) के आगे...
मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-2)
तभी रैना को अपनी हमउम्र एक लड़की ने पीछे से थपथपाया, क्या सोच रही हैं भाभी? भैया को ढूंढ रही हैं निगाहें?
तो रहने दीजिए, कुछ भी मत सोचिए। आपको बता दूं, भैया आपको सारी रस्मो-रिवाज के पूरे होने से पहले नहीं मिलेंगी दूसरा यह आपका कमरा नहीं है।
मेरा कमरा नहीं है?
हां, सारी रस्मो-रिवाज होने तक आप हम सब औरतों के साथ ही रहेंगी और जब तक यहां रहेंगी, मज़े में रह लीजिएगा।
एक बार इस कमरे से बाहर आ गई तो फिर नियम कानून से बंध गई।
नियम कानून...!
हां भाभी, बुआ जी नियम कानून की चलती फिरती पाठशाला हैं। पूजा पाठ से जुड़ी कोई जिज्ञासा ऐसी नहीं होगी, जो वो शांत ना कर दें।
हम हिन्दुओं के धर्म कर्म, नियम की समस्त ज्ञाता हैं...
तभी बाहर से आवाज़ आई, रेखा भाभी को सारा ज्ञान आज ही दे देगी या कुछ उसे खुद भी समझने देगी। चल इधर आ कर कल की तैयारी करवा ले...
अभी आई, कहकर रेखा भाग गई..
रेखा के बताने से कमरे की बात तो पता चल गई। पर अब रैना को संयम का कोई इंतज़ार नहीं था। क्योंकि वो तो वैसे भी सारी रस्मो-रिवाज के बाद ही मिलने थे।
पर अब उसे इस बात की curiousity ज्यादा थी कि दो दिन बाद, ऐसे भी क्या नियम कानून होंगे जो जिंदगी बदल जाएगी...
रात में सभी औरतें सोने के लिए आ गई। सभी के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था थी पर सबसे ज्यादा ध्यान रैना का रखा जा रहा था।
दो दिन बाद ही मुंह दिखाई थी, सुबह से ही घर लोगों से खचाखच भर गया। और सुबह से ही रस्म भी शुरू हो गई, जो कि रात होते होते ही पूरी हुई...
आज रैना को उसका अपना कमरा दिखा दिया गया। कमरा बहुत ही सुन्दर और व्यवस्थित था।
रात में संयम भी आ गया। दोनों के प्रेम की मिलन बेला आ गई थी।
सोने से पहले संयम ने रैना से कहा, सुनो सुबह चार बजे उठ जाना और हां नहाकर तैयार हो जाना, भोर की आरती के लिए..
चार बजे...चार बजे कौन सी सुबह होती है? उस समय तक तो सूर्य देव भी नहीं निकलते...
हमारे यहां यही नियम है, मां की मंदिर की घंटी के साथ ही सुबह हो जाती है। वही सबका उठने का और पूजा के लिए तैयार हो जाने का Alarm होता है...
और हां ध्यान रखना इस बात का, मां का बहुत मान है सब लोगों में, तुम्हारे कारण कम ना होए...
यह कहकर संयम तो सो गया, पर रैना को नींद नहीं आ रही थी। वो तो 7 बजे से पहले कभी उठी ही नहीं थी।
मम्मी कभी कहती भी थीं कि रैना जल्दी उठ जा, तो वो यही कहती, 7 बजे के बाद ही तो सुबह होती है और उसके पहले रात... और रात तो सोने के लिए होती है..
पर मां और मायके की तो बात ही अलग होती है... यहां उसकी कौन समझेगा?
मम्मी-पापा आप ने कैसी जगह मेरी शादी कर दी!.. रैना मन ही मन दुखी होते हुए सोच रही थी।
नया घर, नये नियम...
फिर मम्मी-पापा ने भी तो कहा था कि अब से वही तुम्हारा घर है, वहां जैसा होता है, वैसी ही तुम भी ढल जाना...
सोचते सोचते, रैना की कब आंख लग गई, उसे भी नहीं पता चला...
सुबह के चार बज गए और बज गई मां के मंदिर की घंटी...
आगे पढ़े मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-3) में...