Friday 4 December 2020

Article : यह कैसे अन्नदाता!

 यह कैसे अन्नदाता!




आज कल सुर्खियों में किसान आंदोलन चल रहा है।

दिल्ली का सब तरफ से border घिरता जा रहा है।

समझ नहीं आता कि, किसे क्या कहा जाए?

जो नये नियम आये हैं, उनमें कुछ कमी है? 

या, उन लोगों को दोषी क़रार किया जाए, जो इन मासूम किसानों को बरगला कर अपनी राजनीति सिद्ध कर रहे हैैं?

क्योंकि हमारे अन्नदाता किसान, आज भी बहुत मासूम और सरल है। आज भी आए दिन उनकी सरलता को छला जाता है।

ना जाने कितने दिनों तक, भारत में अन्नदाता किसानों की स्थिति सोचनीय रहेगी।

पर इतने कृष्ट के बावजूद, हमारे अन्नदाता ऐसा कोई कदम नहीं उठाते हैं, जिससे हम "उनकी संतानें" दुःखी हों, परेशान हों।

फिर यह आंदोलन कैसा? 

जबकि इस आंदोलन के चलते, कितने किसानों की मेहनत, ट्रकों में सड़कर बर्बाद हो रही है। मंडी में सब्जियों के भाव आसमान छू रहे हैं। लोगों का अपने काम धंधे पर जाना मुहाल हो रहा है।

यहाँ तक कि ambulance को भी जानें का रास्ता नहीं दिया जा रहा है।

क्या आप को लगता है कि किसान अपनी ही मेहनत को यूं बर्बाद होने देंगे?

क्या आप को लगता है कि किसान अपने हक़ की लड़ाई के लिए आम जनता को कृष्ट में डालेंगे?

यह समय वैसे भी बुआई का है। जो कि किसानों का सबसे व्यस्त समय होता है। उनके लिए जीवन भर की पूंजी और सुख का पर्याय है बुआई का समय।

तो क्या आप को लगता है कि जो आंदोलन चल रहा है, उसमें किसान शामिल हैं? क्या उनके नाम पर कोई दूसरे तो आंदोलन में शामिल नहीं हैं?

क्या किसान, इतने सम्पन्न हैं कि उनके पास महीनों का दाना पानी है कि वो बिना खेती-किसानी किए यहाँ आंदोलन में गुज़ार दें?

क्या आंदोलन में वो यूँ बिरयानी, पकवानों की दावतें कर सकते हैं?

और अगर वो इतने समृद्ध हैं तो आए दिन भूखमरी के चलते किसानों की आत्महत्या की खबरें क्यों आती है?

ऐसे ही बहुत से सवालों से घिरा है, यह आंदोलन।

वैसे एक बात और समझ नहीं आती है, कि दिल्ली में जो भी आंदोलन हो, चाहे जेएनयू का, चाहे शाहीन बाग़ का या अब किसान आंदोलन का, सबमें एक बात common है कि सबमें दावतें बहुत उड़ाई जा रही हैं, सबमें बिरयानी खूब खिलाई जा रही है।

कहाँ से आता है, इन सब के लिए पैसा?

कहीं यह आन्दोलन धोखा तो नहीं? कहीं यह दुश्मन देश या देश के दुश्मन की चाल तो नहीं?


मत करो बदनाम मेरे अन्नदाता को

उसके पास तो, क्षणभर भी नहीं है

अपना पसीना सुखाने को।

और गर खड़े हो उनके लिए,

तो सबसे समृद्ध बना दो उन्हें

पर मत छलो उनकी सरलता को

मत बनाओ उनकी मासूमियत को

हथियार, राजनीति चलाने को।