Tuesday 12 October 2021

Story of Life : " हे माँ,तू धन्य है"

आज आप सब के साथ मुझे भोपाल के मेज़र नितिन तिवारी जी की कहानी को साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।

हम सोचते हैं कि हमारे भारतीय सैनिक, सिर्फ सरहद पर युद्ध करना बखूबी जानते हैं, और यह बहुत सख्त स्वभाव के होते हैं। 

पर हमारे भारतीय सैनानी भी हम सा ही दिल और हम जैसी ही योग्यता भी रखते हैं।

 नितिन जी की लेखनी ने सिद्ध कर दिया है कि वो जितनी वीरता से सरहद पर युद्ध लड़ते हैं, उतने ही बखूबी लेखनी भी चला सकते हैं


 🇮🇳जयहिंद मेरे प्रिय हृदयांश मित्रों

             प्रिय  मित्रों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यदि हम अपने मस्तिष्क में या हृदय में, सच्चे मन से किसी से मिलने की या उनके दर्शनों की अभिलाषा रखते हैं,तो फिर सारी कयानात ही हमारी उस अधूरी अभिलाषा को पूर्ण करने में किसी न किसी रूप में हमारी सहायता करती है।

           (कयानात से मेरा आशय यह है कि ईश्वर भी हमारी सच्चे मन की इच्छा को पूर्ण करते हैं।)

              मित्रों हमारे देश में नाना प्रकार के लोग रहते हैं, उनमें से कुछ आस्तिक होते हैं और कुछ एक नास्तिक भी होते हैं 

                    

                   खैर मुझे क्या......🤷?


                     💁मैं अपनी बात करता हूँ, मैं भी उन आस्तिक लोगों में सम्मिलित हूं जो कि हर निवाले (कौर) पर लक्ष्मीनारायण करने से नहीं चूकता। वैसे आप चाहें तो मुझे ढोंगी की श्रैणी में रख सकते हैं।😂😂😂


 ।।मित्रों मेरे इस किस्से का शीर्षक है।।

 

                    " हे माँ,तू धन्य है"




                        मैं ईश्वर पर, अपने से कहीं ज्यादा विश्वास रखता हूं, और कोई भी कार्य करने से पहले व बाद में उनसे प्रार्थना करना व उनको नमन करना नहीं भूलता। यदि मुझे किसी भी वस्तु की आवश्यकता होती है, या मेरे हित का कोई भी व किसी भी प्रकार का कार्य करना होता है तो मैं सीधे जाकर उनसे सिर्फ यही निवेदन करके कहता हूँ, कि सुनो, न तो मेरे पास पर्याप्त धन है और न ही कोई मेरा किसी तरह का कोई source (जुगाड) है। 

जब आपने मुझे निर्धन,निर्बल,असहाय बना कर इस मृत्युलोक में भेजा है तो, आपको ही जीवन पर्यंत मेरी हर तरह से सहायता करना है।

 ये जिम्मेदारी भी मैंने आपको अपने जीवन रूपी नैया की पतवार आपके श्री हरि चरणों में डाल दी है। अब तेरे ही दिये हुए जीवन का तू ही एकमात्र स्वामी है, सरल शब्दों में कहूं तो "तू ही बनैया,तू ही मिटैया और तू ही पार लगैया है। 

                               ऐसे ही मैं अपने जीवन के विगत वर्षों में अपने पैरों पर खड़े होने की चुनौती को लेकर ,हैरान परेशान होकर न जाने कहां कहां शासकीय नौकरी में आवेदन कर कर के थक गया। किंतु मेरे पक्ष में कोई निर्णय न निकला। तब उस समय शारदीय नवरात्रि का पर्व चल रहा था।

मैं शाम को संध्या आरती के समय एक मेरे घर के नजदीक लगी झांकी पर पहुँचा। और संध्या आरती में शामिल हुआ। 

 आरती पूजन होने के पश्चात पंडित जी आरती की थाली मेरे समक्ष लाये, मैंने आरती और प्रसाद लिया। और देवी माँ को साष्टांग दंडवत करके प्रार्थना की । हे देवी माँ तेरा दिया हुआ ये जो जीवन है,इसको सुचारू रूप से चलाने के लिए जो तूने मेरे लिए क्या व्यवस्था की है?

 क्योंकि मैं यह भली भांति जानता हूँ कि, जिसको तू चोंच देती है,तो उसके चुगने की व्यवस्था तू पहले ही कर देती है। अतः मुझे शीघ्र अति शीघ्र उस व्यवस्था से मिलवा दे। ऐसी प्रार्थना करके मैने मन ही मन संकल्प लिया कि,मेरी शासकीय नौकरी लगती है तो, उसी साल से मैं स्वंय प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्रों में देवी माँ की स्थापना करवाया करूंगा। 

और अनायास ही उसी वर्ष देवी माँ की कृपा से मेरी एक नहीं तीन तीन शासकीय नौकरी में चयन हुआ। सर्व प्रथम बिलासपुर में मेरा भारतीय सेना में चयन हुआ,दूसरा भोपाल में बी.एच.ई.एल में चयन हुआ, एवं तीसरी नौकरी मुझे कोटा में, टिकिट कलेक्टर के पद पर मिली।

                    मित्रों उसी समय से मैं शारदीय नवरात्रों के दिनों में देवी माँ की कृपा से उनकी स्थापना करवाता आ रहा हूँ। और शत् प्रतिशत यदि हो सके तो मैं इन दिनों में सेना से अवकाश पर रहता हूँ। और तन मन धन से देवी माँ की सेवा में समर्पित रहता हूँ। इस वर्ष भी स्थापना करवाई किंतु इस वर्ष मुझे उनकी सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त न हो सका।

                  किसी कारणवश ,मैं तय समय पर सेना से अवकाश पर अपने घर न आ सका। किंतु घर के अन्य सदस्यों के द्वारा मैंने देवी माँ की स्थापना करवाई। पर न जाने क्यों मेरे हृदय में उथल पुथल सी होती रही।

 मानो हृदय बहुत ही व्यथित सा हो रहा था कुछ ठीक नहीं लग रहा था। प्रथम दिन से सप्तमी के दिन तक मेरे हृदय में केवल एक ही बात चल रही थी कि हे माँ मुझे तेरे दर्शन करना है। ऐसा मैं अपने कार्यालय में बैठे बैठे सोच रहा था कि तभी मेरे वरिष्ठ अधिकारी के मोबाइल पर दंतेवाड़ा से एक मुखबिर का का फोन आया कि एक गुप्त जगह पर आज रात्रि में चंड~मुंड नामक दैत्यों की सभा होने वाली है आप देख लीजिए।

                                     इतना सुनते ही हमारे अधिकारी ने बिना देर किए आदेश पारित कर दिया और हमारी टोली तुरंत एक्शन मोड़ में दंतेवाड़ा के लिए उन चंड-मुंडों से दो दो हाथ करने निकल पडी। वहां पहुंचने पर योजना बद्ध तरीके से उन चंड-मुंडों को परलोक पहुंचा कर कुछ राहत की सांस ले ही रहे थे कि मेरे भेजे ने पुनः घुमना  शुरू कर दिया। अब मुझे फिर से देवी माँ के दर्शन करने का विचार आने लगा। तभी मेरा एक साथी जो कि वो लोकल छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का ही रहने वाला था।

 हम सभी लोग रात्रि के समय सिविल पुलिस के रेस्ट हाउस में जाने की तैयारी कर रहे थे कि वो बोला सर आप सभी मेरे घर चले वहीं रात्री भोजन करेंगे एवं विश्राम करेंगे। प्रात: उठ कर स्नान आदि से निवृत्त होकर यहां कि प्रसिद्ध शक्ति पीठ माँ दंतेश्वरी माता के दर्शन करने चलेगें नवरात्रि पर्व भी चल रहा है। बहुत प्रसिद्ध धाम है। उसकी बात सुनकर मेरी दाहिनी आंख फड़की और माता रानी की कृपा मानकर मेने आव देखा न ताव और अपने वरिष्ठ अधिकारी के कुछ बोलने से पहले ही बोल दिया कि चल आज डेरा तेरे ही घर में  डालते हैं ‌। मेरी बात सुनकर मेरे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब तिवारी जी ने डेरा साहू जी के यहां डालने का बोल ही दिया है तो फिर चलो। हम सब खिलखिलाते  हुए उसके घर चल दिए। उसके घर पहुंचने पर हम सभी का बहुत आदर सत्कार हुआ।

 और हम सभी प्रसन्न चित होकर निंद्रा में लीन हो गए। प्रात:काल शीघ्र उठकर स्नानादि कार्य से निवृत्त होकर माँ दंतेश्वरी देवी के दर्शन करने चल दिए। वहां पहुंचने पर माँ काली स्वरुपा दंतेश्वरी माँ के दर्शन करते समय व अपनी हृदय की प्रबल, देवी माँ के दर्शनो की उत्तेजना पूर्ण हो माता रानी का आभार व्यक्त करते हुए  मेरे हृदय से असीम शांति फूट फूट कर आँखो के माध्यम से बाहर निकलने लगी। और मन ही मन मैंने कहा...........🙏हे माँ तू धन्य है🙏

      

                           🇮🇳 जयहिंद 🇮🇳

                      🇮🇳भारतीय सैनिक 🇮🇳


Disclaimer:

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