अब तक आपने पढ़ा, मनीषा व शिखा दो बहने हैं । मनीषा बहुत गोरी है, जबकि शिखा सांवली है। शिखा हमेशा मनीषा से जलती है। पर जब दोनों की बेटी होती हैं, तब मनीषा की सांवली व शिखा की बेटी गोरी होती है........
अब आगे......
आज पांच साल बाद बुआ की 25 anniversary में दोनों बहन फिर से मिल रहीं थी। आज दोनों पहली बार एक दूसरे की बेटी को देखने वाली थीं।
इत्तेफाक ऐसा हुआ कि दोनों एक साथ ही घर पहुंचे। पर ये क्या आज भी सब मनीषा की तरफ ही देख रहे थे।
मनीषा की बेटी साँवली जरूर थी, पर वो बहुत ही मासूम, सरल, और संस्कारी भी थी। उसके
कपड़े भी बिलकुल साफ थे। उसने दूर से सबको प्रणाम प्रणाम करना शुरू कर दिया था।
उसकी ऐसी मासूमियत ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। यहाँ तक शिखा की माँ की भी
पहली नज़र मनीषा की बेटी मृदुल पर ही गयी।
सब जगह बस मृदुल मृदुल..... स्नेहा की तो कोई बात भी नहीं कर रहा था, करते भी क्या? वो कहाँ किसी से घुली मिली थी, वो तो बस दिनभर शरारते करती, या Bruno के साथ खेलती, कोई कुछ बात करता तो बस बदतमीजी से भरे जवाब देती। और कपड़े, हाथ, उनका तो क्या ही कहना, शिखा दिन भर उसे अच्छे कपड़े पहनती रहती, पर वो 5 मिनट से ज्यादा देर साफ ना रहती।
अब आगे......
जलन (भाग-२)
आज पांच साल बाद बुआ की 25 anniversary में दोनों बहन फिर से मिल रहीं थी। आज दोनों पहली बार एक दूसरे की बेटी को देखने वाली थीं।
इत्तेफाक ऐसा हुआ कि दोनों एक साथ ही घर पहुंचे। पर ये क्या आज भी सब मनीषा की तरफ ही देख रहे थे।
वहीं
शिखा की बेटी स्नेहा, शैतान और नकचड़ी थी।
शिखा ने उसे ड्रेस तो बहुत सुदर
पहनाई थी, पर उसमे
कई जगह chocolate लगी
थी, और कुछ
कुछ जगह और भी गंदी ही हो रही थी।
वो बहुत तेज़ी से सबको धक्का देती हुई निकल गई, जिसमे शिखा की माँ गिरते गिरते बचीं, उन्हें मृदुल के नन्हें हाथों ने थाम लिया था।
वो बहुत तेज़ी से सबको धक्का देती हुई निकल गई, जिसमे शिखा की माँ गिरते गिरते बचीं, उन्हें मृदुल के नन्हें हाथों ने थाम लिया था।
शिखा
माँ के पास आ कर स्नेहा की सफाई देती हुई बोली, माँ आप तो जानतीं हैं ना? स्नेहा को अगर doggy दिख जाता है, तो बस, फिर उसे किसी बात का
होश नहीं रहता है। जब घर से चली थी, तभी मैंने उसे Bruno के बारे में बताया था, तभी से वो उससे मिलने को
आतुर थी। बुआ खिसियानी हंसी हंसने लगी, और शिखा स्नेहा की तरफ दौड़ गयी।
दो
दिन तक स्नेहा बस Bruno में ही लगी रही, जबकि मृदुल सबसे प्यारी
प्यारी बातें करके सबका दिल जीतती रही। अब दोनों के लौटने का दिन आ गया, मनीषा सुबह की ट्रेन से
निकल गयी, शिखा को
शाम की ट्रेन पकड़नी थी। शिखा जिस किसी से बात करती, सब बस मृदुल की याद में
डूबे उसकी बात करते मिलते। सब बस यही कहने में लगे हुए थे, मृदुल कितनी प्यारी है, बिलकुल माँ जैसी ही सुंदर
है, और उसकी
मासूम बातों का तो क्या कहना, मन मोह लेती थी। कितनी छोटी सी है, पर सबका ध्यान रखने में
तो, अपनी
माँ से भी आगे निकल गयी है। कितनी सलीकेदार थी। मनीषा उसे सुबह तैयार
करती थी, तो कपड़े
बदलने तक भी उसके कपड़े साफ ही रहते थे। भगवान ऐसी बेटी सबको दें।
सब जगह बस मृदुल मृदुल..... स्नेहा की तो कोई बात भी नहीं कर रहा था, करते भी क्या? वो कहाँ किसी से घुली मिली थी, वो तो बस दिनभर शरारते करती, या Bruno के साथ खेलती, कोई कुछ बात करता तो बस बदतमीजी से भरे जवाब देती। और कपड़े, हाथ, उनका तो क्या ही कहना, शिखा दिन भर उसे अच्छे कपड़े पहनती रहती, पर वो 5 मिनट से ज्यादा देर साफ ना रहती।
शिखा
मृदुल की तारीफ सुन सुन के पक गयी थी। वो अन्दर जा कर रोने लगी। उसे रोता देख नानी
ने पूछा, क्या
हुआ बेटा क्यों रो रही हो?
वो
बोली जब मैं छोटी थी, मनीषा के गोरे रंग के कारण सब उसे ही ज्यादा प्यार देते
थे। और मुझे कोई देखता नहीं था। जब उसकी साँवली और मेरी गोरी बेटी हुई। तब भी सब मनीषा की बेटी को ही प्यार कर रहे
हैं। मेरी स्नेहा, मृदुल से कितनी गोरी और सुंदर है। पर वो किसी को दिख ही
नहीं रही है।
नानी
ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा, बोली मेरी बात ध्यान से सुनेगी ना, मेरी प्यारी सोनपरी?........
नानी ने शिखा से क्या कहा, जानने के लिए पढ़ें जलन (भाग-३)