क्या सही है
एक बार माता रानी, अपने भक्तों से मिलने आयीं। उनके साथ उनका शेर
भी था।
अभी वो कुछ दूर ही चलीं थी। कि उन्होंने देखा एक भक्त नदी किनारे बैठ कर माता रानी के नाम की माला जप रहा था। माता रानी मुस्कुरा के चल दीं।
अभी वो कुछ दूर ही चलीं थी। कि उन्होंने देखा एक भक्त नदी किनारे बैठ कर माता रानी के नाम की माला जप रहा था। माता रानी मुस्कुरा के चल दीं।
वो और आगे चलीं, तो उन्होंने देखा एक जगह, जगराते की बहुत भव्य रूप में तैयारी चल रही थी। तैयारी वाले के पास एक व्यक्ति आ कर बोला, सर जी हमारे यहाँ का जगराता ही सबसे विशाल है। और खाना बनाने वाला भी अपने यहाँ का ही सबसे अच्छा है। अबकी बार तो सबसे ज्यादा हमारे यहाँ ही भीड़ होगी। माता रानी मुस्कुरा के आगे चल दीं।
थोड़ी दूर पर माँ का एक विशाल मंदिर था। पर उसका रास्ता बड़ा टेढ़ा-मेढ़ा था। वहाँ बाहर से आए व्यक्ति अक्सर रास्ता भूल जाया करते थे। अतः वहाँ से लौटते समय वो बहुत थके हुए लौटते थे।
एक आदमी ने वहाँ, अपनी छोटी सी दुकान खोल रखी थी। जहाँ उसने मात्र 5 रुपये में खाना-पानी, दवा, आराम करने की व्यवस्था कर रखी थी, और हर आने वालों से वो बड़े प्यार और आदर से बात कर रहा था। माता रानी वहाँ खड़ी बड़े प्यार से उसे देखती रहीं। फिर आगे चल दीं।
जब वो वापस अपने धाम आ गईं। तो उनका शेर बोला माँ, आप ने सिर्फ आखरी वाले व्यक्ति पर ही स्नेह दिखाया। जब कि वो तो केवल अपना व्यापार ही कर रहा था। पहले वाले दोनों आप के कितने बड़े भक्त थे।
वो बोलीं, पहला वाला, मेरे नाम का जप करने का सिर्फ दिखावा कर रहा था। जबकि उसके मन में यही चल रहा था कि नवरात्रि आ रही है, जब महिलाएं जल भरने आएंगी, तो उनसे माता रानी के नाम पर दान मांग लूँगा। नदी किनारे बहुत सी महिला एक साथ
मिल जाती थीं। इसलिए वो हमेशा कोई भी त्योहार आने से नदी के किनारे ही अपना जप किया करता था। उसको यूँ, माला जपता देखकर सभी उसे बहुत ही धर्मात्मा मानते थे। वो मेरा सच्चा भक्त नहीं है।
दूसरा व्यक्ति, अपने धन के प्रभाव से मेरा विशाल जगराता रख कर, केवल वैभव का प्रदर्शन कर रहा था। वो मेरा सच्चा भक्त नहीं है।
जो तीसरा व्यक्ति था, वही मेरा सच्चा भक्त है। जिस जगह उसकी दुकान है। वहाँ वो अतिशय धन एकत्र कर सकता है। क्योंकि उस समय वहाँ आने वाले सभी भक्तों को वो सुविधाएं चाहिए होती हैं। पर वो, मात्र उतना ही धन ले रहा है, जिससे अपनी दुकान सुचारु रूप से चला सके। और हर आने वाले चाहे वो निर्धन हो या धनवान, सबकी समभाव से सेवा कर रहा है। ना तो उसे धन का लोभ है, ना वो झूठा दिखावा कर रहा है। वो बहुत अच्छा है, वहाँ आने वाले सबको यही लगता है। और ये पूर्णत: सत्य भी है, क्योंकि उसने धर्मात्मा होने का कोई झूठा आडंबर भी नहीं रचा रखा है।
मुझे पाने के लिए कठिन तप, बाह्य आडंबर या बहुत अधिक धन व्यय करने की आवश्यकता नहीं है। उसके बदले में आप सच्चाई, ईमानदारी और श्रम से अपना कर्म करें। निस्वार्थ भावना से लोगों की भलाई करें। अपने माता- पिता, बड़े बुजुर्गों की सेवा व सम्मान करें। छोटों से प्यार करें। तो मुझे तो स्वतः ही पा जाओगे। क्योंकि मैंने आपको मनुष्य रूप में यही कार्य करने हेतु भेजा है। और यही सही है, इसी तरह ही मैं प्रसन्न भी रहूँगी।
ज़ोर से बोलो, जय माता दी
सारे बोलो, जय माता दी