दिल था मेरा मोम का
दिल था मेरा मोम का
वो पिघलाते चले गए
आंच हमेशा ही वो
हर बात पे लगते
लगाते चले गए
पर कब तलक वो
पिघलेगा, खुदा जाने
क्योंकि मोम की ये
भी एक फितरत होती है
वो पिघलता है तो
जलाता भी है
न जाने कब शमा
मशाल बन जाए
जलती है, पिघलती है
पर कब वो इतनी
विशाल बन जाए
कि उसकी आंच की तपिश
भी ना सहन कर सको
कब वो इतनी बड़ी
बवाल बन जाए