नवरात्रि के पावन दिन चल रहे हैं तो सोचा, आज आप को विरासत के अंतर्गत माता के एक ऐसे भक्त की कहानी बताएं, जिसने अकबर को माता रानी के दरबार में सिर झुकाने को विवश कर दिया था।
भक्त ध्यानू
बात उन दिनों की है जब भारत पर अकबर का शासन था, उन दिनों हिन्दूओं को धार्मिक यात्राओं पर भी जाने में बहुत रोक-टोक हुआ करती थी।
एक बार भक्त ध्यानू, अपने एक हजार साथियों के साथ ज्वाला देवी के दरबार में सिर झुकाने जा रहे थे।
जब अकबर के नुमाइंदों ने इतने सारे लोगों का झुंड देखा तो, उन्हें पकड़ कर अकबर के दरबार में ले गये।
अकबर ने कड़क कर, भक्त ध्यानू से पूछा, इतने सारे लोगों को लेकर किस मंशा से निकले हो?
भक्त ध्यानू ने बिना डरे, आत्मविश्वास से भरकर कहा कि वो सब ज्वाला माता के दरबार में सिर झुकाने जा रहे हैं।
अकबर ने पूछा, कौन ज्वाला माता?
ध्यानू ने कहा, ज्वाला माता, दुर्गा माँ का स्वरूप हैं, उनके दरबार में बिन तेल और बाती के ज्वाला जलती रहती है, इसलिए उन्हें ज्वाला माता कहा जाता है।
उनके दरबार में जो कोई भी, सच्चे मन और पूर्ण विश्वास से जाता है, माँ उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
अकबर ने कहा, तुम्हें इतनी आस्था है, अपनी भक्ति और माँ की शक्ति पर तो, तुम मुझे सिद्ध कर के दिखाओ।
यह कहते हुए उसने अपने सैनिक को इशारा किया कि ध्यानू के घोड़े का सिर धड़ से अलग कर दो।
चंद मिनटों में घोड़ा, दर्द से छटपटाते हुए फर्श पर गिर गया और मृत्यु को प्राप्त हो गया।
अकबर बोला, अगर तुम इस घोड़े को जीवित कर के दिखाओ तो मानूं।
तुम्हारी माता रानी की शक्ति और तुम्हारी भक्ति...
ध्यानू भी घोड़े की इस तरह की अकाल मृत्यु से बहुत दुखी हो गया। पर अगले ही क्षण, वो माता रानी की शक्ति पर विश्वास करते हुए आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर बोला, मेरे लौटने तक आप मेरे घोड़े के शव को संभाल कर रखिएगा।
मेरी माता रानी, मेरे घोड़े को अवश्य जीवित कर देंगी।
अकबर ने कहा, उसका हम ध्यान रखेंगे, पर तुम शीघ्र आना, वरना तुम्हारे पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया जाएगा।
ध्यानू अपने साथियों के साथ ज्वाला माता के दरबार की ओर चल दिया।
वहाँ पहुंच कर, उसने नहा-धोकर, माता रानी की अराधना की। पुष्प अर्पित किए, आरती की।
उसके बाद उसने माता रानी से प्रार्थना कि उसके घोड़े को जीवित कर दें।
पर उसे उत्तर नहीं मिला तो उसने पुनः कहा, पर इस बार भी कोई प्रतिउत्तर नहीं मिला तो ध्यानू ने कहा कि यदि आप मेरी प्रार्थना स्वीकार नहीं करेंगी तो मैं अभी अपना सिर आपके चरणों में समर्पित कर दूंगा, क्योंकि मैं अपमानित होकर जीवित नहीं रह सकता।
यह कहकर ध्यानू ने अपनी तलवार से अपना सिर, धड़ से अलग कर माँ के चरणों में समर्पित कर दिया।
ऐसे होते ही, एक शक्ति से माँ प्रकट हो गयीं, उन्होंने ध्यानू को जीवित कर दिया, साथ ही उस घोड़े को भी जीवित कर दिया और ध्यानू से कहा कि तुम दरबार में जा सकते हो।
उधर जब अकबर को पता चला कि घोड़ा, जीवित हो गया है, तो अकबर असमंजस में पड़ गया। उसे अपने कथन पर बहुत अफसोस हुआ..
भक्त ध्यानू के राज्य महल में आते ही अकबर भक्त ध्यानू के पांव पकड़ के क्षमा मांगने लगा।
भक्त ध्यानू ने कहा कि मेरे नहीं, माता रानी के दरबार में जाओ, तुमने मेरा नहीं, माँ का अपमान किया था, इसलिए क्षमा भी वहीं मांगो।
अकबर ग्लानि से भर गया और अगले ही पहर वो अपने दल-बल के साथ ज्वाला माता के दर्शन की ओर चल दिया, उनसे क्षमा मांगने और शीश नवाने के लिए।
जो भी, माता के दरबार में, श्रृद्धा और विश्वास के साथ जाएगा, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी
जयकारा ज्योतावाली का🚩
बोलो सांचे दरबार की जय 🙏🏻🙏🏻