अनूठी सोच (भाग -2) के आगे...
अनूठी सोच (भाग- 3)
हर्षवर्धन जी की बात सुनकर, अमन ने कहा, यह फ़ैसला तो मेरे मां-पापा ही करेंगे। मैं उन्हें कल भेज दूंगा।
अगले दिन अमन के मां-पापा नितिन और मालती, हर्षवर्धन जी के घर आ गए।
हवेली की चकाचौंध से दोनों की आंखें चुंधिया गईं। उन लोगों की हर्षवर्धन जी ने बहुत अच्छे से आवभगत की।
उसके बाद वे बोले, आपका बेटा बहुत होनहार है, उसमें सुसंस्कार कूट-कूट कर भरें हैं। अगर आप लोगों अनुमति दें तो मैं उसे अपना दामाद बनाना चाहता हूं।
नितिन और मालती, बिना कुछ कहे बस एकटक एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे।
मैं समझ गया आप की कश्मकश, मैं अमन को घर जमाई नहीं बना रहा हूं, इसके लिए उसने मुझसे पहले ही मना कर दिया है।
नितिन मालती दोनों ही बहुत खुश हो गए, इतने बड़े घर की इकलौती बेटी, बहू बनकर आएगी तो सम्पन्नता तो अपने आप घर आ जाएगी। इससे अच्छा तो कुछ भी नहीं हो सकता, दोनों ने बिना एक पल भी गवांए हां कर दी।
आप पहले श्यामली से तो मिल लेते, फिर...
मालती ने बीच में ही हर्षवर्धन जी की बात काटते हुए कहा, जी जब बच्चों ने एक दूसरे को पसंद कर लिया तो देखना दिखाना क्या है। जिंदगी तो उन दोनों को एक दूसरे के साथ काटनी है। जब मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी...
एक महीने के बाद का शुभ मुहूर्त निकला। हर्षवर्धन जी ने बहुत ही भव्य तरीके से शादी के सारे आयोजन किए।
बारात में शामिल जितने भी लोग थे, सब बोल रहे थे कि अमन की तो लाटरी निकल गई। कुछ ने श्यामली को देख कुछ नाक-भौंह भी सिकोड़े, पर फिर भव्य स्वागत देखकर आपस में इतना ही बोले, जहां करोड़ों मिल रहे हों, वहां इतना compromise तो करना ही पड़ेगा, फिर हमें क्या, हमें कौन सा निभाना है। हमें तो party के मजे लेने चाहिए, कौन ऐसी party फिर मिलनी है...
शादी हो गई, विदा की बेला आ गई। हर्षवर्धन जी ने बहुत सारे सामान और रुपए पैसे दिए।
तभी अमन ने हर्षवर्धन जी से कहा, पापा जी मैं यह सब कुछ नहीं लूंगा, दहेज नहीं जाएगा मेरे साथ... अगर आप को अपनी बेटी, सिर्फ शादी के जोड़े में विदा करनी हो तो ठीक है, अन्यथा आप अपनी बेटी को अपने पास ही रखें।
अरे बेटा जी, यह क्या कह रहे हो? तुमने मुझसे मांगा थोड़ी ना है, फिर यह दहेज कैसे हुआ? यह सब तो तोहफे हैं, जिस पर तुम दोनों का हक़ बनता है। बल्कि मेरी कंपनी पर भी...
आप को मेरी काबिलियत पर शक है?
कैसी बात कर रहे हो अमन? तुम्हारी काबिलियत और संस्कार को देखकर ही तो मैंने अपनी बेटी तुम्हें सौंपी है...
पर मैं कुछ नहीं दूंगा तो दुनिया क्या कहेगी, कि इतने बड़े घर की लड़की और खाली हाथ विदा हो गयी...
पापा जी, क्या आप ईश्वर से भी बड़े हो गए हैं?
क्या कह रहे हो अमन!
सोचिए, ईश्वर जिसके पास पूरा जहान है देने के लिए, उसने हमें खाली हाथ भेजा, तो हम इंसानों की औकात क्या कि किसी को कुछ दें।
ईश्वर ने हमें जन्म के साथ दिया है, तो यह बहुत सारे रिश्ते... जो हमारा ध्यान रखते हैं, आशीर्वाद देते हैं, बहुत सारा स्नेह देते हैं और हमें कभी अकेला नहीं रहने देते हैं।
आप भी मुझे अपना आशीर्वाद, स्नेह और साथ दीजिए, इनसे अनमोल कुछ भी नहीं...
ओह अमन, मैंने तुम्हें सोना समझा था, पर तुम तो हीरा निकले.. मुझे तुम पर गर्व है, और इस बात का सुकून की मैंने तुम्हें अपनी बेटी के लिए चुनकर बिल्कुल सही निर्णय लिया है।
साथ ही गर्व है, तुम्हारी अनूठी सोच पर... तुम चाहते तो रुपए के ढेर पर बैठ सकते थे। पर तुमने उस नश्वर चीज़ को ठुकरा कर अनमोल रिश्तों, आशीर्वाद, स्नेह और साथ को चुना... तुम्हारी जैसी अनूठी सोच अगर सबकी हो जाए तो दहेज प्रथा जैसी समाजिक कुरीति का जड़ मूल से नाश हो जाए...
सब अमन के फैसले से बहुत खुश थे और अमन की अनूठी सोच पर उसे बधाई दे रहे थे।
बस मां दुःखी थीं कि बेटे ने हाथ आए मौके को गंवा दिया, साथ ही उन्हें इस बात का भी अफसोस था कि उनके इतने खूबसूरत बेटे के लिए कैसी सी बहू मिली है! ... ना माया मिली ना राम...
हर्षवर्धन जी, मालती के मन की बात समझ गये, वो बोले समधन जी, आप अफसोस ना करें, आपने कोई घाटे का सौदा नहीं किया, आप का बेटा होनहार है और मेरी बेटी गुणी...मेरा विश्वास कीजिए, बहुत जल्दी आप मुझसे भी बड़ी हवेली में रहेंगी और साथ ही बहुत सम्मान और प्यार भी मिलेगा आपको जिंदगी भर... फिर मैं तो हूं ही, आप सबका साथ देने के लिए...
हर्षवर्धन जी की बात सुनकर मालती भी बहुत खुश हो गई, उसे भी अपने होनहार बेटे और उसकी अनूठी सोच पर नाज हो गया...