निर्लज्ज (भाग - 2)
जब वो लोग उठकर जाने लगे तो श्वेता के पिता ने, तृषा के पैर पकड़ लिए कि ऐसे ना जाएं, मेरी नौकरी का आखिरी महीना चल रहा है, फिर retirement हो जाएगा, तब रिश्ता होना और कठिन हो जाएगा।
हमें आप और आपका बेटा दोनों बहुत पसंद आए हैं, आप से बेहतर, हमारी बेटी को दूसरा रिश्ता नहीं मिल सकता...
तृषा बहुत ही कोमल और सरल हृदय की थी, उसे श्वेता के पिता का यूं कहना, मन में कहीं कचोट गया और वो हां कर के आ गई।
कार्तिक ने घर आकर कहा, मां आपने हां क्यों कह दिया।
तृषा बोली, बेटा उनसे ना कह कर आना, एक पिता के दिल को बहुत दुःखी कर देता। तुम परेशान मत हो, जब श्वेता हमारे घर में आएगी तो तुम्हारा प्यार पाकर हमारे घर में ढल जाएगी।
तृषा ने दान-दहेज के लिए साफ़ मना कर दिया। शादी के लिए ख़र्चा भी बराबर बांटने को बोल दिया, साथ ही बहुत कम बाराती लेकर गई।
इन सब कारणों से श्वेता की शादी इतनी अच्छी और धूम से हुई कि, जिसकी कल्पना ना तो श्वेता ने की थी और ना ही उसके घर में किसी ने...
श्वेता के पिता ने तो इसके लिए तृषा का ना जाने कितनी बार आभार व्यक्त किया...
श्वेता ससुराल आ गई और चंद ही दिनों में उसने अपने तेज स्वभाव को दर्शाना प्रारंभ कर दिया।
वो job करती थी तो उसने कहा दिया कि वो working है तो घर का कुछ भी काम नहीं करेगी। कार्तिक को यह बिल्कुल मंजूर नहीं था कि मां अकेले काम में लगी रहें।
पर तृषा ने ही कहा कि घर में कलह नहीं होनी चाहिए, घर का काम ही कितना होता है, वो अकेले संभाल लेंगी। वैसे भी अभी श्वेता के सुख वाले दिन हैं।
अब कार्तिक क्या ही बोलता? पर इस बात से श्वेता को ऐसी जीत मिली थी कि अब तो वो अपनी हर मनमानी मनवाने लगी।
और कुछ दिनों बाद, तो उसने नौकरी भी छोड़ दी, कहने लगी मैंने शादी, जिंदगी भर नौकरी करने के लिए नहीं की थी और खर्चे... वो तो इतने अनाप-शनाप करती थी कि कार्तिक को अकेले के दम पर घर चलाना मुश्किल लगने लगा था।
उसके ऊपर कर्ज़ा बढ़ने लगा, tension और श्वेता की मनमानी से वो बहुत दुःखी रहने लगा और फिर उसको और तोड़ने के लिए, उसे कैंसर हो गया।
जब उसने घर आकर मां और श्वेता को बताया, तो नकचढ़ी श्वेता सकपका गई, उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके सपने यूं चकनाचूर होंगे।
और कठिन से कठिन परिस्थितियों को मुंह तोड़ कर जवाब देने वाली तृषा भी, यह सुनकर अंदर तक बुरी तरह से हिल गई। पति का असमय जाना तो उसने बर्दाश्त कर लिया था, पर कार्तिक! नहीं भगवान इतना निर्दई नहीं हो सकता.. इसकी कल्पना से ही उसके दिमाग की नसें फटी जा रही थी...
आगे पढ़े निर्लज्ज भाग -3 में....