Saturday 1 September 2018

Article : माँ के हाथ

माँ के हाथ




आज माँ का हाथ यूँ ही मेरे हाथों में आ गया। जब देखने लगा गौर से तो पाया, बड़ा ही खूबसूरत हाथ है। बहुत ही नर्म एहसास था माँ के हाथों का। गोरी गोरी कलाई, उस पे लाल-लाल चूड़ी बड़ी सी, बहुत ही मनोरम लग रही थी।
पतली लंबी उंगली, तरतीब से कटे हुए नाखून, उनके व्यवस्थित तरीके से रहने को दर्शा रही थी।
मैं अभी निहार ही रहा था, कि माँ ने अपने सीधे हाथ से मेरा हाथ हटाते हुए कहा, क्या देख रहे हो इतनी गौर से, छोड़ो भी मेरे हाथ को, मुझे बहुत से काम करने हैं।
माँ का सीधा हाथ, देखा तो देखता ही रह गया। उसकी पहली उंगली में ठेक पड़ी हुई थी, कहीं कटे के निशान थे, तो कहीं जले के थे।
वो हाथ, उल्टे हाथ के बनिस्पत काफी सख्त भी था। नाखून भी खुरदुरे थे, उस हाथ के।   
माँ तो काम करने चलीं गईं। पर मेरे मस्तिक में एक सवाल छोड़ गयी।
वो हमेशा मुझे बाएँ हाथ से ही सहलाया करती थी, शायद इसलिए, कि मुझे उनके रूखे हाथ का एहसास ना हो।
कभी जल्दी जल्दी सब्जी काटते हुए शायद उनके हाथों में चाकू लग जाता होगा, उस समय पानी से हाथ धोकर, या उंगली को दबा कर खून रोक दिया करती होंगी, और फिर काम में लग जाती थीं वो। पर कभी रोटी थोड़ी भी मोटी हो जाती तो, मैं माँ से ये कहने से अपने आप को नहीं रोकता था। क्या माँ, आज कैसी रोटी बनाई है? वो कभी नहीं बोलती थीं, कि हाथ में लगी थी, इसलिए बेलन सही से चल नहीं रहा था। हमेशा कहती, अभी ऐसी खालो, आगे से ध्यान रखूंगी कि मेरे लाडले को पतली रोटी ज्यादा पसंद है।
कभी हाथ खाना बनाते हुए जल जाता, तो उनकी आह इतनी हल्के से निकलती थी, कि जो सिर्फ उनके ही कानों तक ही पहुँचती थी। पर खाने में जरा नमक-मसाला कम या ज़्यादा हुआ, कि हमारी आवाज़ गूंज उठती, क्या सब्जी है आज, मन ही नहीं कर रहा खाने का।
आज समझ आया, माँ कितने दुख अपने हाथों में छुपाए रखती है, और हमारी एक आह पे हम से पहले तड़प उठती है।और हम भी जरा सी चोट लगी नहीं कि तुरंत दौड़े जाते हैं, क्योंकि जानते हैं, माँ के हाथ का कोमल एहसास हर दवा से बढ़ कर है।
मेरी माँ के हाथों का स्पर्श जब मुझे छू जाता है, क्या कहूँ कौन सी करिश्माई दुनिया में लिए जाता है।

जहाँ ना गर्म है ना सर्द
ना दुख है ना दर्द
एक अजब सा एहसास है
जो बहुत ही खास है
शायद यही है, जो
उन्हें सब से अलग करता है
इसके कारण ही सबको
माँ में रब दिखता है 

सच माँ कितनी महान होती है। क्या हम भी माँ की तरह, उनसे पहले उनके लिए सोच सकते हैं। उनकी खुशी, उनके दुख, को उनसे पहले समझ सकते हैं।  नहीं, शायद उतना तो समझ ही नहीं सकते। पर ये तो कर ही सकते हैं, कि जब वो कुछ ऐसा कर रही हों, जैसा वो समान्यतः नहीं करती हों, तो उसका कारण समझने का प्रयास करें। ना कि उन पर झल्लाएं। और माँ के स्पर्श के उस एहसास को याद करें जब माँ ने आपको प्यार से सहलाया था।