Tuesday 23 February 2021

Short Story : साधना

 साधना


खुशबू जी, अपनी सभी जिम्मेदारियों को पूरा कर चुकी थी, दो बेटे और एक बेटी थी। 

सबका विवाह हो चुका था,  सबके बच्चे भी हो चुके थे। सब अपने परिवार में सुखी थे।

पति भी retire हो चुके थे। वो बड़े independent थे। जब तक job करते रहे, तब तक तो खूशबू जी, तब भी कुछ काम बोल दिया करते थे, पर अब तो एक भी काम के लिए कुछ ना बोलते थे। और बचे हुए समय में अपने आप को बागवानी में रमा लिया था।  

खुशबू को तन्हाई सताने लगी थी। उसको समझ नहीं आता, क्या करें।

आजकल की भागती दुनिया में किसी के पास कुछ समय नहीं था।

बच्चे बोले माँ, आप को whatsapp, Facebook सिखा देते हैं। समय कब निकल जाएगा, आप को पता भी नहीं चलेगा।

बच्चों के सिखाने से कुछ दिन मन उसमें रम गया। पर कुछ दिन बाद, virtual world उन्हें रास नहीं आया।

बेमतलब की झूठी तारीफ और दुनिया भर के forward messages से उनका मन जल्दी ही भर गया।

किसी ने कहा, सत्संग देखो, वहाँ जाओ, मन प्रसन्न रहेगा।

सत्संग का असर यह होने लगा कि उनका जीवन के प्रति मन ही उचाट होने लगा।

जिसको देखकर, पति और बच्चों ने उन्हें ऐसा करने को मना कर दिया।

एक दिन अचानक से उनकी मुलाकात, अपनी बचपन की सहेली रीता से हो गयी।

रीता बड़ी नकारात्मक सोच वाली हुआ करती थी। पर अभी वो बहुत प्रसन्न दिख रही थी।

खुशबू ने इसका कारण पूछा तो वो बोली, हम लोगों की साधना है इसका कारण।

वो कैसे?

मेरे समूह में हमउम्र लोग हैं। सब किसी ना किसी काम में बड़ी निपुण हैं। 

हमारे समूह का हफ्ते भर का काम बंधा हुआ है।

एक दिन हम भजन गाते हैं, जिसमें हर हफ्ते किसी एक को नया भजन गाना होता है, चाहे नया भजन खुद बनाओ या कहीं से नया सुनकर या देखकर लाओ। ऐसे हमें बहुत सारे भजन याद हो गये हैं।

एक दिन हम कपड़े सीलते हैं। जिसको अच्छा आता है, वो dress बनाता है, बाकी उसकी मदद करते हैं। जिससे सबके पास बहुत अच्छी dress हो गई है।

एक दिन सब मिलकर खूब बढ़िया खाना बनाते हैं, फिर उसे अपने घर में ले जाकर परिवार के साथ खाते हैं।

एक दिन हम गरीबों की बस्ती में जाते हैं, और वहाँ अपने हाथों से बना खाना और कपड़ा बांटकर आते हैं।

एक दिन हम सब एक दूसरे की परेशानी पर चर्चा कर के उसका हल निकालते हैं। जिससे सबका मन हल्का हो जाए। कोई किसी की व्यथा का मज़ाक नहीं उड़ाता है।

एक दिन हम सब में से कोई एक अपना हुनर सबको सिखाता है।

और एक दिन हम सब, कहीं घूमने जाते हैं, कभी शहर के ही किसी मन्दिर या किसी monument या कभी बाज़ार। और कभी कभी शहर के बाहर भी घूमने जाते हैं। किसी के पति या बच्चे भी साथ चलना चाहें तो चल सकते हैं।

इस तरह हम सब साधना करते हैं।

वाह! क्या मुझे भी अपने group में शामिल करोगी?

नेकी और पूछ-पूछ, तुम तो वैसे भी हमारे group की शान थी। तुम जैसी होनहार से कौन नहीं जुड़ना चाहता है।

कुछ दिनों में ही खुशबू जी, साधना की नई खुशबू से महकने लगी। उन्हें खुश देखकर सब खुश थे।

अब वो, सब से यही कहतीं, अपने हम उम्र लोगों का साथ और जीवन के सभी रंग, यही तो सच्ची साधना है।