दर्द का एहसास
कमला के बहुत मना करने के बाद भी रमेश, बिना मास्क लगाए घर से निकल गया।
पर अभी आधा घंटा भी नहीं हुआ था कि करहाते हुए घर लौट आया।
रमेश के पैर और हाथ में नील के निशान थे। कमला फ़ौरन से कपड़े में बर्फ रखकर दौड़ी आई।
कमला ने सिकाई शुरू कर दी थी और रमेश बोले जा रहा था।
यह पुलिस वाले भी, कोई दया धरम नहीं है इन लोगों में।
गला सूख रहा था, सोचा था, एक बोतल मिल जाएगी तो चार दिन निकल जाएंगे।
वो तो लेने नहीं दी और बेदर्दी से ऐसे मारा है, जैसे कोई जानवर को भी नहीं मारता है।
मरहम लगा दूं, कुछ आराम आ जाएगा, कमला धीरे से बोली......
आई बड़ी मरहम लगाने वाली.... तू क्या जाने दर्द के एहसास को...
कमला दबे शब्दों में बोली, अब नहीं होता दर्द का एहसास, आदत पड़ चुकी है.....
सर से पांव तक नील ही तो थी उसके शरीर में......