इसमें
मेरा क्या कसूर 2
“इसमें मेरा क्या कसूर” में आप सब ने भैया की बातें इतने
अच्छे से सुनी कि अपनी आपबीती बताए बिना, मुझ से भी नहीं रहा गया, और हाँ आप सब मेरी कहानी भी पूरे ध्यान से सुनिएगा।
हाँ तो हुआ यूँ, जब मैं पैदा हुआ, तब तक सब का जोश ठंडा हो चुका था, क्योंकि आप सब जानते ही हैं, बड़े भैया के समय क्या
हुआ था। अब जब माँ को प्रसव पीड़ा हुई, तो कोई साथ चलने को तैयार
नहीं था।
सबसे गज़ब बात तो यह थी, कि पिता जी भी आने में
आना-कानी कर रहे थे। तभी माँ ने घूर के देखा, और कहा- अगर आप भी नहीं चलेंगे, तो मैं भी hospital नहीं जा रही। माँ के ऐसा बोलने से पिता जी घबरा गए,
घर में बच्चा कैसा पैदा होगा? तो साथ चल दिये।
मेरे पैदा होने पर nurse पिता जी को मुझे सौंपने आई, पिता जी मुझे देखकर दुखी
हो गए। nurse ने पूछा, क्या हुआ आप
दुखी क्यों हैं? गोरा चिट्टा, सुंदर सा
बेटा भी आपको खुश नहीं कर पाया?
बेटा!..... मेरे बेटा हुआ है? जी, nurse
कहकर चली गयी। पर पिता जी को यक़ीन ही नहीं हुआ, कि कोई लड़का भी इतना गोरा, सुंदर हो सकता है? उन्होंने तुरन्त check किया। तब जा कर वो यक़ीन कर पाये।
कहकर चली गयी। पर पिता जी को यक़ीन ही नहीं हुआ, कि कोई लड़का भी इतना गोरा, सुंदर हो सकता है? उन्होंने तुरन्त check किया। तब जा कर वो यक़ीन कर पाये।
हद तो तब हो गयी, जब पिता जी मुझे, माँ के पास ले गए, क्योंकि,
जनाब! माँ भी बिना check करे, यक़ीन ना
कर सकीं। अब मैं ऐसा हूँ, तो हूँ,
इसमें मेरा क्या कसूर।
पूरे घर को बता दिया गया, गोरा सुंदर सा बेटा हुआ है, लोग तो कई आए, पर जितनों ने मुँह देखा, उतने ही लोगों की check
करने की भी इच्छा थी।
हालात यहीं नहीं थमे, पहले जन्मदिवस पर ना जाने कितनी ही frock मिल गईं। उसमें से कुछ तो बहुत
ही खूबसूरत भी थीं, जिसने माँ का मन मोह लिया।
बस फिर क्या था, मुझे उनमें से एक सुन्दर सी frock पहना दी। साथ ही मेरे घुँघराले काले
बालों में सुन्दर band लगाकर चोटी भी बना दी। पर इतने से ही
मन भर लेती माँ, मत कर ऐसा माँ......।
पर नहीं जी, माँ तो, माँ होती है। अपने लाडले को इतनी खूबसूरती
से तैयार किया था, और facebook पर फोटो
upload ना करें। ऐसा कैसे हो सकता था?
भाई
सच! जितने किसी cute लड़की को comments
ना मिलें होंगे, उससे बहुत अधिक मुझे मिले थे।
सबने लिखा था, इतनी cute baby आज तक
नहीं देखी, अब माँ सबको कहती रह रही,
बेटी नहीं बेटा है......
दादी अलग गुस्सा हो गयी, अच्छे खासे लड़के को लड़की बना कर रख दिया। अब मैं ऐसा हूँ, तो हूँ, इसमें मेरा क्या कसूर।
कुछ बड़ा हुआ, तो अलग ही मुसीबत का सामना करने लगा, जब भी बीमार
पड़ता, और डॉ. को दिखाया जाता, तो सब
बोलते, कैसा सफेद रखा है, आपका बच्चा, कुछ खाता नहीं है क्या? इसका तो hemoglobin बहुत कम है, पहले वही check करना होगा। मेरा hemoglobin हमेशा 12 के ऊपर ही रहा, पर हर बार मेरा hemoglobin check करा दिया जाए।
सही hemoglobin देखकर भी
किसी का मन ना भरे, मुझे दुनिया भर की दवाई और ना जाने क्या
क्या खाने की हिदायत मिल जाए।
checking हमेशा चलती रही ..... अब मैं ऐसा हूँ, तो हूँ, इसमें मेरा क्या कसूर।
भगवान जी भी ज्यादा ही
मेहरबान थे, रूप के साथ बुद्धि भी भरपूर दी थी, तो बस क्या था School से लेकर college तक ना जाने कितनी लड़कियाँ दीवानी हो गयी थीं।
आप सोच रहे होंगे, मज़े थे भाई तुम्हारे तो..... अरे! नहीं थे, जितनी
थीं, सब चाहतीं, उन्हें ही भाव मिले, एक को दो, तो दूसरी खफ़ा। homework तक नहीं बताती थीं, अब एक अकेला मैं किस किस को खुश
करूँ। अब मैं ऐसा हूँ, तो हूँ, इसमें
मेरा क्या कसूर।
जब जवानी आई तो माँ की
सख्त हिदायत थी, खबरदार जो किसी को घर ले आया, मेरी पसंद की लड़की से ही शादी करनी होगी।
पर वो बात अलग है, कि माँ भी अपनी ज्यादा चला नहीं पायीं, क्योंकि
सारे रिश्तेदार अपनी-अपनी पसंद की लड़की के साथ पहले ही booking
करके रखे थे।
अब तो माँ भी परेशान, बुआ की
पसंद वाली से करें, तो चाची खफा, चाची
की पसंद देखें तो मामी बोलें, दीदी हमेशा ससुराल वालों की
तरफ ही झुकेंगी, मौसी भी कहाँ पीछे रहती, खूब बढ़-चढ़ कर मामी का साथ देतीं, आखिर उन्हें अपनी
वाली की setting जो करनी थी। और माँ का रुख जरा मायके पक्ष की
ओर हुआ, कि बुआ-चाची की त्योरियाँ चढ़ जाती, खबरदार, भाभी जो उधर की लड़कियाँ देखी तो!
माँ भी अपना सर पकड़ कर बैठ जाती, एक के लिए कोई
बताता नहीं है, दूसरे के लिए कोई छोड़ता नहीं है। अब मैं ऐसा
हूँ, तो हूँ, इसमें मेरा क्या कसूर।
और जनाब, शादी क्या हुई, मेरे भी घोड़े के मानिंद पट्टी बांध
दी गयी, जिससे मैं सदा सीधे ही देखूँ (मतलब
हमेशा बीवी को) , कहीं इधर-उधर नहीं देख सकता था। तब भी बीवी का शक कम नहीं होता, हर रोज़ तगड़ी checking होती है, ऐसा कैसे हो सकता है, कि कोई पास ना मँडराई हो?
Checking still continues..... अब मैं ऐसा हूँ, तो हूँ, इसमें मेरा क्या कसूर।
काले और लाल कपड़े तो मेरे
लिए हमेशा ही ban रहे, बचपन में माँ ने पहनने
नहीं दिये, कि हाय! मेरे लाल को नज़र ना लग जाए, वैसे ही इतना गोरा है, काले-लाल में और ही खिलेगा। बीवी भी पहनने नहीं देती है, कहती है, वैसे ही गोरे रंग ने आफत मचा रखी है, काला-लाल पहनने दूँगी, तो सारे समय घर के आगे कर्फ़्यू
लगा रहेगा, अब मैं ऐसा हूँ, तो हूँ, इसमें मेरा क्या कसूर।
Disclaimer : यह कहानी एक कल्पना मात्र
है, आप सबको
हास्य व्यंग्यात्मक
कहानी के जरिए हँसाने की कोशिश की है। किसी को
किसी भी तरह की चोट पहुँचाने का
इरादा नहीं है।
Complexion से कोई फर्क नहीं पड़ता है, गम सब के हीं हैं, अलग-अलग। पूरी तरह से जहान में खुश तो कोई भी नहीं।