देव उठनी एकादशी व एकादशी का उद्यापन
हम हिन्दुओं में बहुत से व्रत-त्यौहार होते हैं, जिनमें कुछ साल में एक बार या दो बार होते हैं तो कुछ मासिक और कुछ साप्ताहिक...
हर महीने होने वाले व्रतों में एकादशी व्रत को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। बारह मासी होने वाली एकादशी में देव उठनी एकादशी व देवशयनी एकादशी का बहुत महत्व है।
देवोत्थान एकादशी और तुलसी विवाह का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु चार महीने तक सोने के बाद दवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं। इसी दिन भगवान विष्णु शालीग्राम रूप में तुलसी से विवाह करते हैं। देवउठनी एकादशी से ही सारे मांगलिक कार्य जैसे कि विवाह, नामकरण, मुंडन, जनेऊ और गृह प्रवेश की शुरुआत हो जाती है।
हम आपको पहले ही देव उठनी व देवशयनी एकादशी के विषय में बता चुके हैं। आप इनकी सम्पूर्ण जानकारी के लिए, देव उठनी एकादशी व देवशयनी एकादशी पर click कर सकते हैं।
आज देव उठनी एकादशी है, अतः आज से ही मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। हे जगदीश्वर, हे परमपिता परमेश्वर आप से कर जोड़ कर प्रार्थना है कि सर्वत्र मंगल कार्य सम्पन्न करें।
आज के दिन हम आपके साथ एकादशी व्रत से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण विधि विधान के विषय में चर्चा करेंगे।
एकादशी उद्यापन :
एकादशी व्रत एक तप है तो उद्यापन उसकी पूर्णता। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि हे पार्थ, कष्ट से रखा गया एकादशी व्रत निष्फल है, यदि उसका उद्यापन ना किया जाए। अर्थात व्रत की पूर्णतः उद्यापन के साथ ही होती है।
दोनों पक्ष के 24 एकादशी व्रतों का उद्यापन किसी भी पक्ष की एकादशी को कर सकते हैं (लेकिन चौमासे में एकादशी उद्यापन नहीं करना है)। शास्त्रों के अनुसार एकादशी उद्यापन दो दिन का कार्यक्रम होता है पहले दिन एकादशी को व्रत के साथ पूजा होती है तथा द्वादशी को हवन करके 24 या 12 ब्राह्मणों को दान देकर भोजन करवाया जाता है।
जो लोग एकादशी व्रत रखते हैं वो अच्छी तरह जानते हैं कि इस व्रत को रखने का कार्य यूं ही बंद नहीं कर दिया जाता है। इसका पहले उद्यापन किया जाता है, उसके बाद ही व्रत का पारण होता है।
इस व्रत को रखना जितना श्रेष्ठकर है, इसके उद्यापन का भी उतना ही महत्व है। और इसके उद्यापन के बहुत-से नियम कानून भी हैं, साथ ही बस यही एक ऐसा व्रत है, जिसका उद्यापन करने के पश्चात् भी आप व्रत रख सकते हैं। और इस व्रत का उद्यापन अपने जीते-जी करना बहुत शुभ भी मानते हैं।
आप कहेंगे कि आज देव उठनी एकादशी व्रत है और हम इस समय में उद्यापन की बात कर रहे हैं।
तो आप को बता दें कि एकादशी व्रत का उद्यापन किसी भी एकादशी में नहीं कर दिया जाता है, बल्कि देव उठनी एकादशी ही इस व्रत के उद्यापन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
देव उठनी एकादशी से देवशयनी एकादशी तक के बीच की कोई भी एकादशी में आप एकादशी व्रत का उद्यापन कर सकते हैं। लेकिन देवशयनी एकादशी के दिन व उससे देव उठनी एकादशी के आने तक की एकादशी में कभी भी एकादशी व्रत का उद्यापन नहीं किया जाता है। यह दिन ही चौमासे कहलाते हैं।
माना जाता है कि जब आप देवताओं के लिए रखे जाने वाले सर्वश्रेष्ठ व्रत का पालन कर रहे हैं तो उसे सम्पूर्ण करने का उद्यापन भी उनके जाग्रत अवस्था में ही करें, जिससे ईश्वर आपको सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान कर के मुक्ति प्रदान करें और मुक्ति मिलने तक का आपका शेष जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहे।
एकादशी उद्यापन के नियम के विषय में विस्तार से आपको फिर कभी जानकारी देंगे।
तब तक के लिए आप सभी अपने घरों में मंगल कार्यों को सम्पन्न करें, श्रीहरि विष्णु जी की कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे 🙏🏻🙏🏻