आज जब हम कोरोनाकाल में जी रहे हैं क्या तब भी हम संवेदना विहीन हो सकते हैं?
शायद नहीं?
आप कहेंगे, इसमें शाय़द का सवाल ही नहीं उठता है।
जी हम भी यही कहते हैं।
पर जो कुछ भी उस हथिनी के साथ हुआ, उसे किसी भी तरह से संवेदनशीलता नहीं कहा जाएगा।
क्या कसूर था, उस निरीह प्राणी का, मात्र इसके सिवाय कि उसने इन्सानों से इन्सानियत की अपेक्षा कर ली थी।
ऐसे समय में, जहाँ अगले पल क्या होगा, किसी को नहीं पता।
कोरोना तो है ही, इसके साथ ही कहीं भूकंप आ रहा है तो कहीं तूफान। ऐसे समय में संवेदन हीनता तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए।
आज हम एक-दूसरे को गिरा कर जीवित नहीं रह सकते हैं, बल्कि एक-दूसरे के साथ से ही विजयी हो सकते हैं।
एक-दूसरे के लिए संवेदनशील बनकर। एक दूसरे के मददगार बनकर।
इसके भी आज कल बहुत उदाहरण हैं, हमारे सामने।
बहुत से लोग और कम्पनियाँ, सब आगे से आगे बढ़ कर देश को सुदृढ़ बनाने में लगे हैं।
ऐसे में कभी जमातियों की हरकतें, कभी साधुओं की हत्या, और अब तो बेहद विकृत कार्य!
एक ऐसा कृत्य, जिसने सम्पूर्ण मानव जाति को शर्मिंदा कर दिया। ऐसी हरकत करने वाले ने यह भी नहीं सोचा, उसकी इस हरकत ने ना केवल माँ, बल्कि अजन्मे शिशु की भी निर्मम हत्या कर दी।
एक माँ को इतना दुखी कर दिया कि उसने अपने बच्चे को इस क्रुर दुनिया में जन्म देने से बेहतर जल समाधि लेना उचित समझा।
एक हथिनी अगर कुपित हो जाए तो वो बहुत तहस नहस कर सकती है, पर उसने शांत रह कर, प्राण त्याग दिए, पर क्या ईश्वर भी माफ़ करेंगे?
पर क्या आप को लगता है, इसके प्रति कोई ठोस न्याय किया जाएगा या महज़ राजनीति का मुद्दा बना कर सब अपना-अपना उल्लू सीधा कर लेंगे।
कृपया इस विषय को केवल राजनीतिक मुद्दे तक मत सीमित रहने दें।
वरना आए दिन, इन्सानियत का यूँ ही खून होता रहेगा और स्थिति कोरोना से ज्यादा भयावह हो जाएगी। बात उस हद तक ना पहुंचने दें 🙏🏻
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