अब तक आपने पढ़े फ़र्ज़ (भाग - 1) और फ़र्ज़ (भाग - 2)।
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फ़र्ज़ ( भाग - 3)
आप कुछ मत सोचिए डॉक्टर जी, आप बस जल्दी से इलाज शुरू कीजिये, शायद यही नियति
है। कहीं देर ना हो जाए.....
ईला तुरंत operation में जुट
गयी, उसने रेखा को बचा लिया।
फिर वो bone marrow transplant की preparation करने लगी। एक हफ्ते बाद bone marrow transplant का भी operation था। operation
वाले दिन ईला से अखिल मिलने आया, और बोला, हमे पूरा विश्वास है कि, आप दोनों का बचा लेंगी, बस आप
हिम्मत मत हारना। आज आपको अपने दोनों फ़र्ज़ में जीतना है।
ऐसी बात सुनकर ईला नए जोश से दोनों को बचाने के लिए operation theater में चली गयी। ईला की मेहनत रंग लायी, operation
successful रहा। दोनों ही सुरक्षित थे।
ईला ने आकर अखिल को बताया, operation successful रहा, दोनों ही सुरक्षित हैं, ये केवल आपके कारण संभव हो सका।
अखिल बोला, आप बहुत अच्छी डॉक्टर हैं, इसलिए ही दोनों बच्चे सुरक्षित हैं।
ईला बोली, अगर
आप बुरा ना मानें, तो क्या मैं रेखा को गोद ले लूँ। आज वो ना
होती तो, मेरा बेटा मुझसे हमेशा के लिए दूर हो जाता। आपका
बोझ भी कम हो जाएगा, मैं आपको बहुत सारे रुपए भी दूँगी।
नहीं, मुझे कुछ भी रुपए नहीं चाहिए। मुझे अपनी रेखा बहुत प्रिय है, मैं आपको उसे नहीं दे पाऊँगा।
पर तब तो आप, अपनी बीवी और मुझसे कह रहे थे, कि .....
ईला की बात बीच में काटते हुए अखिल बोला, बेटियाँ बाप पर कभी बोझ नहीं होती हैं। वो तो रेखा की हालत बहुत खराब थी, उसके ना बचने से रेखा की माँ को बहुत दुख ना हो,
इसलिए उससे ऐसा बोला था।
और आप से इसलिए कहा था, कि आपके मन में बोझ नहीं होगा, तो आप ज्यादा अच्छे
से operation कर पाएँगी, आपका हाथ नही
काँपेगा।
अखिल की बातें ईला के दिल को छू गईं, वो उनके सामने नतमस्तक हो गयी, उसने अखिल को बहुत सारा धन्यवाद दिया, और साथ ही अखिल के बहुत मना करने के बावजूद उन्हें ये कह कर बहुत सारे रुपए दे दिये, कि आपकी वजह से ही मैं अपने माँ और डॉक्टर
दोनों के फ़र्ज़ निभा सकी हूँ। आप मुझे रेखा को गोद मत दीजिये,
पर उसका खर्चा उठाने में सहयोगी तो बना रहने दीजिये।
आज ईला बहुत खुश थी, उसने अपने
दोनों फ़र्ज़ बहुत अच्छे से निभाये थे।