प्यारी दीदी
अर्जुन अपनी बहन नेहा के साथ खेल कर मस्त रहा करता था।
दोनों बच्चे दिन भर खेलते, लड़ते, पढ़ते मस्त रहा
करते।
पर जब से नेहा की नयी classes
शुरू हुई थीं, तब
से उन दोनों का साथ में
खेलना बहुत हद तक कम हो चला था। नेहा अब 10th में आ गयी थी। अब उसकी पढ़ाई काफी बढ़ चुकी थी। school
के साथ साथ ही tuition
भी शामिल हो गयी थी।
अब तो नेहा घर में भी बहुत कम रहती थी।
पर इससे अर्जुन बहुत अकेला अकेला रहने लगा। नेहा का दिन भर का साथ था, school जाएँ एक साथ, घर
में रहे तो एक साथ।
दोनों एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते थे, लड़ाई भी होती, तो वो भी बहुत जल्दी दोनों आपस में
सुलझा लिया करते थे।
नेहा का यूँ व्यस्त होना अर्जुन को बहुत खलने लगा था। वो आए दिन
दीदी को बोला करता, दीदी
आज ludo खेले, आज
आप मेरे साथ bat-ball खेलेंगी। और नेहा का ज्यादातर जवाब यही होता, मेरा सोना भैया, आज नहीं खेल पाऊँगी, कल
खेलेंगे। पर रोज-रोज कल कल सुन सुन के वो
गुस्सा होने लगा था, कहता आप अब
मेरी प्यारी दीदी नहीं
रहीं, मुझे
आप अब प्यार नहीं करतीं हैं।
नेहा भी उदास हो जाती।
उन्हीं दिनों वहाँ नितिन का परिवार रहने आया। नितिन अर्जुन का हमउम्र था। पर अर्जुन कहीं बाहर खेलने नहीं जाता। नेहा ने सोचा, अगर नितिन और
अर्जुन की आपस में दोस्ती करा दी जाए, तो
अर्जुन का अकेलापन खत्म हो जाएगा।
नेहा ने समय निकाल के दोनों के साथ खेलना शुरू कर दिया। अब तो नितिन और
अर्जुन का एक दूसरे के घर आना-जाना शुरू हो गया था। कभी खेल, कभी लड़ाई दोनों ही चलने लगा। जब भी दोनों
दोस्तों में लड़ाई होती,
बीच –बिचाव करने का
काम नेहा ही करती। दोनों ही नेहा की बात हमेशा मानते। धीमे-धीमे नेहा दोनों
दोस्तों के बीच से हटने लगी, और फिर से अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गयी।
दोस्त का साथ पा कर अर्जुन का अकेलापन कुछ हद तक कम
हो गया था। और अपनी प्यारी दीदी नेहा से, प्यार बहुत अधिक बढ़ गया था; क्योंकि नेहा
की सूझबूझ से ही उसे नितिन जैसा अच्छा दोस्त मिल गया था। जिसने उसके अकेलेपन को
खत्म कर दिया था।