हिन्दूओं का सबसे बड़ा पर्व दीपावली है, यह तो बचपन से सुनते हुए ही बड़े हुए हैं और बहुत धूमधाम से इस महापर्व को मनाया भी है।
पर देव दीपावली.. यह क्या है? कब और क्यों मनाई जाती है?
आप को देव दीपावली के विषय में विस्तृत रूप से बताने से पहले, इस पंक्ति से समझिए देव दीपावली का आशय, जो कि, कार्तिक पूर्णिमा के दिन, बनारस के घाट पर नजर आता है...
आस्था के दीप, श्रद्धा की बाती... गंगा तट पर दमकेगी सांस्कृतिक थाती…
अर्थात्, गंगा नदी के तट पर जलने वाले हजारों दीप, जो लोगों में, भगवान विष्णुजी और महादेव जी की आस्था और श्रद्धा के प्रतीक हैं, भारतीय संस्कृति और परंपरा को प्रकाशमान कर रहे हैं।
चलिए अब जान लेते हैं, क्यों इतना खास है देव दीपावली का त्यौहार...
देव दीपावली
क) देव दीपावली का महत्व :
देव दीपावली का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन का हिंदू धर्म में खास महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस पावन दिन पर दान-पुण्य करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन सुखमय रहता है। कहा जाता है कि इस दिन धरती पर देवतागण आते हैं और सभी के दुखों को दूर करते हैं।
देव दीवाली को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मनाते हैं।
देव दीवाली का त्यौहार, मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी (बनारस, काशी) में मनाया जाता है। जो पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को पड़ता है। इस साल यह पर्व, 15 नवंबर को मनाया जा रहा है। तो आइए इस पर्व से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।
ख) देव दीपावली का कारण :
1. हयग्रीव का वध :
भगवान विष्णुजी ने भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन, मत्स्यावतार लेकर सम्पूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी।
मत्स्यावतार (मत्स्य = मछली का) भगवान विष्णु का अवतार है जो उनके दस अवतारों में से प्रथम है। इस अवतार में भगवान विष्णु ने इस संसार को भयानक जल प्रलय से बचाया था। साथ ही उन्होंने हयग्रीव नामक दैत्य का भी वध किया था जिसने वेदों को चुराकर सागर की गहराई में छिपा दिया था।
2. त्रिपुरासुर का वध :
सनातन धर्म में देव दीवाली को बेहद शुभ माना जाता है। इसे मनाने के पीछे कई कारण बताए गए हैं। एक समय की बात है, त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने देवताओं के सभी अधिकार को उनसे छीनकर स्वर्गलोक पर अपना अधिकार कर लिया था, जिससे परेशान होकर सभी देवता महादेव के पास पहुंचे और उनसे मदद मांगी। तब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर उसके आंतक से सभी को मुक्ति दिलाई।
इससे सभी देवगण प्रसन्नता से भर उठे और भगवान शिव के धाम काशी में जाकर गंगा किनारे दीप प्रज्जवलित किए। यह उत्सव पूरी रात चला। ऐसा माना जाता है कि तभी से देव दीपावली की शुरुआत हुई।
प्रकाश के इस त्योहार को मनाने के लिए भक्त विशेष रूप से वाराणसी में गंगा घाटों पर जाते हैं। साथ ही लोग विभिन्न पूजा अनुष्ठान का पालन करते हैं और मंदिरों में दीपदान भी करते हैं।
इस तरह से राक्षसों पर देवों की विजय का प्रतीक है, देव दीपावली...
आइए, हम भी अपने घर-आंगन में दीपों की लड़ी सजाएं, देव दीपावली मनाएं, श्रीहरि विष्णुजी और महादेव जी की कृपा पाएं 🙏🏻