रूपा
घर मेहमानों से भरा था, माँ रूपा को, सख्त हिदायत दे रहीं थीं, रूपा अंदर के
कमरे में ही रहना, खबरदार जो बाहर आई।
रूपा अन्दर जा ही रही थी, तभी रत्ना मौसी आ गयीं। क्या हुआ छोटी, क्यों सुबह
से ही रूपा पर बरस रही है?
अरे क्या करू ? मेरे घर में सभी
गोरे-रूपवान हैं, ये कल्लो रूपा ही ना जाने क्यों मेरे घर का
मान घटाने आ गयी। उसी को अन्दर रहने को बोल रही थी, नहीं तो सब लोग मेरी जान खा जाएंगे, इस कल्लो को
लेकर।
बड़े भैया रूपेश को छोड़कर, सारे लोग उसे कल्लो नाम से ही पुकारा करते थे। रूपेश ने उसका नाम प्यार
से रूपा रखा था।
सब का रूपा के लिए यह व्यवहार रूपेश भैया को बहुत कचोटता था।
आज उनसे रहा नहीं गया, उन्होंने रूपा को बहुत सारी किताबें लाकर दी, और कहा, रूपा तुझे यही सुंदर बना सकती हैं, मान दिला सकती हैं।
आज उनसे रहा नहीं गया, उन्होंने रूपा को बहुत सारी किताबें लाकर दी, और कहा, रूपा तुझे यही सुंदर बना सकती हैं, मान दिला सकती हैं।
अब रूपा दिन रात किताबों में ही खोयी रहती। उसकी
मेहनत रंग लायी, वो कलेक्टर बन गयी।
आज भी घर मेहमान से भरा था, माँ सबसे बड़े गर्व से बोल रहीं थी, मेरा अहो-भाग्य
जो रूपा मेरे घर हुई। वहीं सब परिवार, रिश्तेदार उसे
सांवला-सलोना तीखे नैन-नक्श वाली कहकर प्रसंशा कर रहे थे।
रूपेश भैया ने सच में उसे रूपा बना दिया था।