बहू का हिसाब
रमा जी व प्रेमप्रकाश जी बहुत खुश दिखाई दे रहे थे।
होते भी क्यों नहीं उनके एकलौते बेटे की शादी जो हो रही थी।
प्रेमप्रकाश जी एक बड़े व्यापारी थे, उनका बेटा सूरज IAS officer था, बहुत संस्कारी और देखने में भी बेहद smart था।
अपने शहर का most eligible bachelor था, उसकी शादी के लिए बहुत सारे रिश्ते आ रहे थे।
पर प्रेमप्रकाश जी नजरें एक ऐसी होनहार बहू को ढूंढ रहे थे, जिसे अपने परिवार की बागडोर सौंपे तो, जिंदगी भर नाज़ कर सकें।
आखिरकार उनकी खोज, अपने एक दोस्त के घर जाकर पूरी हुई।
प्रेमप्रकाश जी को बचपन के दोस्त हरिप्रसाद जी की बेटी सुलक्षणा बहुत पसंद आई, अपने बेटे सूरज के लिए।
हरिप्रसाद जी, प्रेम प्रकाश जी जैसे धनाढ्य तो नहीं थे, पर सुलक्षणा अपने नाम सी सुंदर सुशील और गृहकार्य दक्ष थी।
धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ। जो भी उन्हें देखता, सब उनकी खूबसूरत जोड़ी को निहारता रहा जाता। लोग कहते, सब चाहते थे कि, प्रेमप्रकाश जी के घर उनकी बेटी जाए। और प्रेम प्रकाश जी अपने राजकुमार से सूरज के लिए आसमान से परी उतार लाएं।
दुनिया भर की रस्मों रिवाज में हफ्ता निकल गया।
फिर सूरज और सुलक्षणा हनीमून पर चले गए। दोनों जहाँ भी घूमने जाते, ना जाने कितने उनके साथ अपनी फोटो खींचवाने लगते।
एक दिन तो, सुलक्षणा सूरज से बोल ही दी, मेरी आप से शादी हुई है और हम हनीमून मनाने आए हैं या किसी फिल्मी शूटिंग पर।
लोग हमें अकेला रहने ही नहीं देते हैं।
सूरज बोला, एक तो हम पापा के बच्चे हैं, जिनका देश में बहुत नाम है। फिर आप का पति IAS officer. पर आप को पता है सबसे बड़ी बात क्या है?
सुलक्षणा ने बड़ी मासूमियत से पूछा और वो क्या है?
मेरी बहुत हसीन, परियों की रानी से शादी हो गई है, यह कहते हुए सूरज ने सुलक्षणा को अपनी बाहों में भर लिया।
सुलक्षणा शर्म से लाल हो गई।
ऐसे ही प्यार के स्वर्णिम पलों से भरे दस दिन कब बीत गए, पता ही नहीं चला।
वो लोग घर पहुंचे तो रोज का निमंत्रण मिलने लगा।
शादी को दो महीने बीत गए, पर सुलक्षणा को सब नया सा ही लगता था।
उसके घर में सब उसको हाथों हाथ लेते थे।
एक दिन सुलक्षणा ने रमा जी से कहा, माँ जी, मैं अब इस घर की जिम्मेदारी लेना चाहती हूँ।
रमा जी बोलीं, यह तो बहुत अच्छी बात है। उन्होंने पूरे घर की चाबी, सुलक्षणा को सौंपते हुए कहा कि यह तुम्हारा घर है। आज से इसे अपने तरीके से संभालो।
घर की जिम्मेदारी आते ही सुलक्षणा ने पाया कि उसकी ससुराल तो उसकी सोच से बिल्कुल अलग है......
आगे पढ़ें, बहू का हिसाब (भाग -2) में......