विश्वास
माधो अपने पापा के साथ अपनी दादी जी को लेने गांव गया था।
उसकी दादी जी का गांव हरियाली से भरा हुआ था, उनके आंगन में बहुत से पंछी आया करते थे।
पापा, दादी के सामान बांधने में उनकी मदद कर रहे थे और माधो चिड़ियों के पंख इकठ्ठे कर रहा था।
वो जब भी अपनी दादी जी के घर आता था, उसे यह पंख हमेशा ही अपनी ओर खींचते थे।
उसे एक मोर पंख मिला, वो उसे लेकर दौड़ाता हुआ अपनी दादी जी के पास आया, और बोला दादी जी यह पंख भी मिला, आज आंगन में।
उसके पापा बोले, आज मोर भी आया होगा।
दादी ने माधो को झट अपनी गोद में बिठाते हुए कहा, अरे कान्हा जी आए होंगे। उन्हीं का गिर गया होगा।
कान्हा जी, कौन दादी जी?
अरे! तुम्हें कान्हा जी नहीं पता?
अच्छा चलो, तुम्हें उनकी कहानी सुनाती हूँ।
कहानियाँ सुनते सुनते, माधो सो गया।
अगले दिन सुबह वो लोग शहर वापस आ गए।
कहानियों का और दादी जी की बातों का माधो के बाल मन पर गहरा असर पड़ा।
वो कान्हा जी की पूजा करने लगा और कान्हा जी के आने का इंतजार करता, रोज़ सुबह शाम।
बालकनी में मोरपंख को ढूंढता, पर शहर में कहाँ मिलता मोरपंख?
हाँ शहर में कोरोना रूपी महामारी का प्रकोप जरुर बहुत जोर से फैलने लगा था।
उसके चलते, दादी जी को भी कोरोना हो गया। उनका oxygen level भी कम होने लगा था, घर में सब बहुत घबरा रहे थे कि ना जाने क्या हो?
पर माधो अपने कान्हा जी का बेसब्री से इंतजार कर रहा था, कि वो अब जरुर से आएंगे। और उसकी दादी जी ठीक हो जाएंगी।
एक दिन वो अपनी बांसुरी बजा रहा था, तभी ना जाने कहांँ से एक मोरपंख खिड़की से उसके पास आ गया।
मोरपंख देखकर वो खुशी से उछल पड़ा। उसने बांसुरी अपनी कमर में फंसाई, मोरपंख बालों में लगाया। और अपनी दादी जी के कमरे की तरफ दौड़ गया।
और जब तक कोई उसे, वहाँ जाने से रोकता, वो दादी जी के कमरे के दरवाजे के पास पहुंच गया था।
माधो अभी दरवाजे पर था, तो दादी जी ने माधो को देखा, वहांँ हल्का धुंधला दिखाई दे रहा था। जिसमें दादी को माधो की कमर की बांसुरी और लहराता मोरपंख दिख रहा था।
ऐसा लग रहा था कि कान्हा जी खड़े हों, दादी ने प्रणाम किया।
तभी माधो, चिल्ला उठा, दादी जी! कान्हा जी आ गये। अब आप ठीक हो जाएंगी।
माधो की आवाज में सशक्त आस्था और विश्वास था। जिसने दादी में प्राणवायु का संचार कर दिया।
दादी बहुत जल्दी ठीक होने लगीं। कुछ दिनों में वह पूरी तरह से ठीक हो गईं।
Doctors भी आश्चर्य कर रहे थे, उनकी fast recovery पर।
जब दादी जी पूरी ठीक हो गईं, तो पापा बोले देखा माँ, शहर में थीं तो doctors ने बचा लिया, गांव में रहतीं तो ना बचतीं।
दादी जी बोलीं, मुझे doctors ने नहीं तुम्हारे बेटे के विश्वास ने बचाया है।
जिसका कान्हा हो रखवाला, उसका कहाँ कुछ बिगड़ने वाला।