आज आप के लिए India's Heritage segment में, एक ऐसी कहानी लाएं हैं जो भारत की समृद्धि और सुदृढ़ता की जीती जागती मिसाल है।
एक ऐसी कहानी जिसमें, देशप्रेम भी है, सुरक्षा व्यवस्था की अनुपम छटा भी है और समृद्धि तो ऐसी कि आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे।
चूरू किले की अद्भुत कहानी
बात बहुत पुरानी है, जब भारत में राजे-रजवाड़ों का राज्य था।
उस समय में राजा अपने राज्य या किले की रक्षा के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते थे। यहां तक कि राज्य प्रेम के आगे, वो सोने-चांदी, हीरे-जवाहरात की भी कीमत नहीं समझते थे।
आज हम आपको एक ऐसे ही एतिहासिक किले की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो इतिहास में अमर है, क्योंकि वहां जो घटना घटी थी, वो न तो दुनिया में कहीं और घटी है और न ही कभी घटेगी।
इस घटना की वजह से ही किले का नाम विश्व इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है।
तो चलिए और पहेली नहीं बुझाते हैं, हम बात कर रहे हैं चूरू किले की, जो राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है। वर्ष 1694 में ठाकुर कुशल सिंह ने इस किले का निर्माण करवाया था। इस किले के निर्माण के पीछे मकसद आत्मरक्षा के साथ-साथ राज्य के लोगों को भी सुरक्षा प्रदान करना था।
यह किला दुनिया का एकमात्र ऐसा किला है, जहां युद्ध के समय गोला बारूद खत्म हो जाने पर तोप से दुश्मनों पर चांदी के गोले दागे गए थे।
यह इतिहास की बेहद ही हैरान कर देने वाली घटना थी, जो वर्ष 1814 में घटी थी। उस समय इस किले पर ठाकुर कुशल सिंह के वंशज ठाकुर शिवजी सिंह का राज था।
इतिहासकारों के मुताबिक, ठाकुर शिवजी सिंह की सेना में 200 पैदल और 200 घुड़सवार सैनिक थे, लेकिन युद्ध के समय सेना की संख्या अचानक से बढ़ जाती थी, क्योंकि यहां रहने वाले लोग अपने राजा के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार रहते थे और इसलिए वो एक सैनिक की तरह दुश्मनों से लड़ते थे।
इस का अर्थ यह है कि राज्य में सभी को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता था। जिससे राज्य पर दुश्मन के आक्रमण करने पर, सब डटकर मुकाबला कर सके। और जब राज्य में शांति व्यवस्था रहे, तब कुछ लोग सेना का हिस्सा बने रहे और बाकी जीवन यापन से जुड़े अन्य कार्य, जैसे खेती, व्यापार, दुग्ध उत्पादन आदि जैसे अन्य कार्य करते थे। जिससे राज्य समृद्ध और सुदृढ़ रहे।
वहां की प्रजा केवल सेना का हिस्सा नहीं बनती थी, बल्कि वह अपने राजा ठाकुर शिवजी सिंह और राज्य की रक्षा के लिए अपनी धन-दौलत तक लुटा देती थी।
1814, अगस्त का महीना था। जो चूरू के किले पर काल बनकर आया था।
बीकानेर रियासत के राजा सूरत सिंह ने अपनी सेना के साथ चूरू किले पर हमला बोल दिया। इधर, ठाकुर शिवजी सिंह ने भी अपनी सेना के साथ उनका डटकर मुकाबला किया, लेकिन कुछ ही दिनों में उनके गोला-बारूद खत्म हो गए।
गोला-बारूद की कमी देख राजा चिंतित हो गए, लेकिन उनकी प्रजा ने उनका भरपूर साथ दिया और राज्य की रक्षा के लिए अपना सोना-चांदी, सब राजा पर न्यौछावर कर दिए।
जिसके बाद ठाकुर शिवजी सिंह ने अपने सैनिकों को आदेश दिए कि दुश्मनों पर तोप से चांदी के गोले दागे जाएं। इसका असर ये हुआ कि दुश्मन सेना ने हार मान ली और वहां से भाग खड़े हुए। यह घटना चुरू के इतिहास में अमर है।
अगर आप समझ सकें तो हमारा इतिहास, हमें यह शिक्षा दे रहा है कि देश की सुदृढ़ सुरक्षा के लिए यह आवश्यक नहीं है कि सेना विशाल हो।
बल्कि कोई भी देश तब ज़रुर सुदृढ़ और सुरक्षित रहता है, जब उस देश का हर नागरिक, देशप्रेमी हो, सैनिक हो- अर्थात हर नागरिक को सैन्य प्रशिक्षण दिया गया हो।
जिससे, जब दुश्मन आक्रमण करे तो हर नागरिक, दुश्मन की ईंट से ईंट बजा देने में सक्षम हो।
और जब शांति रहे, तब कुछ सैनिकों को छोड़कर अन्य लोग जीवन की आवश्यकताओं से जुड़े कार्य करके देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करके देश को सफलता के शीर्ष पर पहुंचा दें।
यही है अग्निपथ योजना, जिसमें देश के हर युवा (चाहे पुरूष हो या महिला) को अग्निवीर बनाने की कोशिश की जा रही है।
जिससे देश इतना सशक्त हो जाए कि दुश्मन हमारे देश पर आक्रमण करने की सोच भी ना रख सके। और साथ ही हम अन्य क्षेत्रों में भी आगे बढ़ते जाएं, जिससे अर्थव्यवस्था भी इतनी सुदृढ़ रहे कि देश सफलता के शीर्ष पर रहे।
देश के दुश्मन, चाहे वो बाहर के हों या देश के भीतर हों, कोई नहीं चाहेगा कि भारत सफ़ल और सुदृढ़ बनें।
तो यह हमें सोचना है कि क्या उचित है, क्या अनुचित, क्योंकि हम तभी सुखी होंगे, जब देश सफ़ल और सुदृढ़ रहेगा।
जय हिन्द जय भारत 🇮🇳