मेहनत और मेहनताना
हमारे घर के पीछे एक बड़ा सा park है, जिसमें पास की बस्ती के लड़के दिन भर खेलते रहते थे।
उन्हें देखकर बेटा आर्यन बोला, माँ इन लड़कों के कितने मजे हैं।
यह दिनभर खेलते रहते हैं, ना तो इन्हें school जाना होता है ना ही कोई homework करना होता है।
काश, ऐसे ही मैं भी दिनभर मस्ती कर पाता!
माँ, कुछ नहीं बोलीं, बस बेटे की बात सुन ली।
कुछ दिनों बाद, पूरे parking space में tiles लगाने का कार्य आरम्भ हो गया।
बहुत से मज़दूर थे, कुछ मिस्त्री और एक ठेकेदार कार्य में लगे थे।
मज़दूर दूर रखी ईंटा गारा सीमेंट लाकर देते। मिस्त्री, एक बार भी सामान लाने के लिए नहीं उठता, बैठे बैठे ही सारा काम करता।
धूप बहुत तेज थी, पर सब अपना काम तल्लीनता से कर रहे थे।
हर रोज़ सिर्फ 3 घंटे के लिए ठेकेदार आता, सारे काम को observe करता।
अगला काम कैसे करना है, वो समझाता; क्या क्या सामान और चाहिए, इसकी list बनाता; कुछ देर तक यह देखता कि, काम ठीक से हो रहा है, और फिर चला जाता।
यह सब काम वो, एक छोटे कमरे में बैठ कर करता, जहाँ पंखा लगा हुआ था।
जिस officer ने ठेकेदार को काम दिया था, वो alternate दिन में 10 minutes के लिए आता था। बाकी समय वो अपने AC वाले office में रहता था।
कार्य शुरू हुए मात्र 1 week ही गुज़रा था, कि बहुत ज़ोर से बारिश शुरू हो गई।
मज़दूरों और मिस्त्री ने जो काम किया था वो खराब होने लगा। उन्हें फिर से मेहनत करनी पड़ी, पर भरी बरसात में भी वो लगे रहे।
चार-पांच दिनों तक बारिश होती रही, उतने दिन में ठेकेदार दो दिन ही आया। और executive तो एक भी दिन नहीं आया।
बारिश बन्द हो गई और चंद दिनों बाद काम भी पूरा हो गया। Parking space बहुत ही सुन्दर लगने लगी।
सभी को उनकी मेहनत का मेहनताना दिया गया।
सबसे अधिक रुपए executive को मिले, उससे कुछ कम ठेकेदार को, ठेकेदार से कम मिस्त्री को और सबसे कम रुपए मज़दूरों को मिले।
कुछ दिन बाद parking space का inauguration हुआ। सभी लोग executive officer की बहुत तारीफ कर रहे थे कि उसने बहुत अच्छा काम कराया।
चंद लोग उस ठेकेदार के काम की भी तारीफ कर रहे थे।
पर उन मिस्त्रियों और मज़दूरों के काम की प्रशंसा कोई नहीं कर रहा था। एक भी ऐसा नहीं था, जो कह रहा हो कि असली मेहनत तो मिस्त्री और मज़दूरों ने की है।
आर्यन बोला, माँ यह तो ग़लत बात है कि किसी ने भी असली मेहनत करने वालों की तारीफ़ नहीं की और ना ही उन्हें मेहनताना ज्यादा मिला।
माँ ने समझाया, बेटा जिसने ज्यादा मेहनत की है, मेहनताना उसे ही ज्यादा मिली है।
वो कैसे माँ ?
वो ऐसे कि जो बच्चे दिन भर खेलते रहते हैं और अपने बचपन का अनमोल समय व्यर्थ बर्बाद करते हैं। वो बड़े होकर किसी लायक नहीं होते हैं।
उन्हें अपना जीवन यापन करने के लिए बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है। पर ना उन्हें अधिक रुपए मिलते हैं ना ही प्रशंसा। यह वो लोग हैं जो मज़दूर थे।
जो बच्चे दिन भर खेलते हैं, पर बड़े होने से पहले ही मेहनत कर के कुछ विशेष कार्य सीख लेते हैं। उन्हें बड़े होकर मेहनत थोड़ी कम और चंद रुपए ज्यादा मिल जाते हैं। यह वो लोग हैं जो मिस्त्री थे।
जो बच्चे स्कूल तो जाते हैं, पर पढ़ने में मेहनत कम करते हैं। उन्हें बड़े होकर कुछ मेहनत और कम करना पड़ता है और रुपए ज्यादा मिल जाते हैं, कभी कभी लोगों से प्रशंसा भी मिल जाती है और कुछ आदर भी। यह वो लोग हैं जैसे ठेकेदार था।
जो बच्चे स्कूल जाते हैं, अपना home work पूरा करते हैं, मेहनत से पढ़ते हैं। फिर उन्हें बड़े होकर, सबसे कम मेहनत करनी पड़ती है, मेहनताने में सबसे अधिक रुपए और बहुत सारी तारीफ मिलती है, सब लोग उनका सम्मान करते हैं। यह वो लोग हैं जो कि बड़े होकर executive officer बनते हैं।
ओह! मतलब जो बचपन में ज्यादा मेहनत करते हैं, उन्हें ही बड़े होकर कम मेहनत में ज्यादा मेहनताना मिलता है।
एकदम सही!!
उसके बाद आर्यन ने कभी नहीं कहा कि बस्ती वाले लोगों के बहुत मज़े हैं, क्योंकि अब वो उन जैसा कभी नहीं बनना चाहता था।
उसे तो बड़ा होकर कम मेहनत और ज्यादा मेहनताना चाहिए था।