मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-3)
अपने मायके में सबसे देर से उठने वाली रैना, आज उठकर, नहा-धोकर तैयार थी।
शायद सबने उसकी सास का जो खाका खींचा था, उसी का असर था।
संयम के साथ रैना भी पूजा के लिए मंदिर में आ गई थी और आते से ही सबके चरणस्पर्श करने लगी।
ठहर जाओ बहू, हमारे घर में सबसे पहले ठाकुर जी के चरणस्पर्श करते हैं, उनकी पूजा अर्चना करते हैं, उसके बाद ही किसी और के पैर छूते हैं।
जब भजन कीर्तन शुरू हुआ तो रैना से भी भजन गाने को कहा गया, तो उस ने कान्हा जी का एक बहुत ही सुरीला भजन गाया।
सब वो भजन सुनकर मंत्र मुग्ध हो गये।
बहू को सुबह सुबह मंदिर में देखकर और भजन सुनकर, सब गायत्री जी से बोली रहे थे। मान गए जिज्जी, आपको बहुत ही संस्कार वाली बहू मिली है।
गायत्री जी, बड़े गर्व और प्यार से रैना की तरफ देख थी।
आज पहली रसोई भी थी, पर रैना को कुछ समझ नहीं आ रहा था, ऊपर से नींद के झोंके आ रहे थे, सो अलग।
अभी वो सोच ही रही थी कि क्या बनाए, तब तक गायत्री जी अंदर आ गई थी।
वो बोलीं, बिटिया हमने बहुत सारी चीजों की तैयारी कर दी है, तुम बस झटपट सब गर्म करके अच्छे से लगा दो।
मीठा तो तुम्हें ही बनना होगा, पर हां सूजी भी भूनी रखी है, उसमें चीनी भी मिली रखी है, तुम उसे खूब सारे घी और मेवे के साथ तैयार कर लो।
हम जा रहे हैं, नहीं तो सबको लगेगा हम ही सब कर रहे थे।तुम सब लाकर dinning table सजा देना...
यह कहकर गायत्री जी चलीं गईं पर रैना के लिए सब आसान कर गईं।
कुछ देर में ही रैना ने सारी dinning table सजा दी। सबने जब नाश्ता खाया तो हर तरफ से वाह-वाह के स्वर सुनाई दे रहे थे।
अरे भाई संयम, तुम्हारी पत्नी ने तो पहले ही दिन में मैदान जीत लिया।
सच भाभी, बड़े गुणों वाली बहू ढूंढी है आपने संयम के लिए।
रैना को झोली भर भर कर आशीर्वाद और नेग मिल रहे थे।
आज रैना को जो भी तारीफ मिल रही थी, उसमें गायत्री जी का भी हाथ था। पर उन्होंने वो किसी को नहीं बताया...
एक से दो दिन में सारे मेहमान चले गए। पर सुबह चार बजे उठने का नियम नहीं बदला...
पर बस सुबह उठकर नहा-धोकर पूजा अर्चना ही करना होता था, बाकी के काम तो सुघड़ गायत्री जी इतनी जल्दी निपटा देती थीं कि जब तक कोई सोचे कि क्या काम करना है, काम ख़त्म हो चुका होता था।
घर के काम निपटने के चंद घंटे बाद से ही लोगों का तांता लगने लगता था, कोई मुहूर्त पूछने आता, कोई पूजा पाठ के नियम कानून...
आस-पास कहीं भी कोई भी पूजा पाठ व्रत त्यौहार होते और मां के नाम की गुहार लग जाती।
मां नियम कानून में रची-बसी ही दिखती। रैना समझ गई थी कि उसकी सास का कितना मान है, साथ ही कि बस नियम कानून पर विशेष ध्यान देना है और जीवन सुखद रुप से कट जाएगा।
एक हफ्ते में रैना को सुबह उठने से परेशानी होना बंद हो गई थी बल्कि अब तो उसे सुबह उठने के फायदे नज़र आने लगे थे।
उसको बचपन से ही सिर दर्द की परेशानी थी, जो अब जल्दी उठने के कारण ठीक हो गई थी।
संयम को वापस दिल्ली लौटना था, उसने मां से कहा कि, मुझे जाना होगा।
मां बोली, अकेले जाएगा कि बहू को भी ले जाएगा?
आगे पढ़े मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-4) में....