यह एक ऐसी कहानी है, जिससे हर एक लड़की जुड़ी हुई है।
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बंटवारा प्रेम का (भाग - 3)
छोटे भाइयों और बहन को भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि खुशी अपने छोटे भाइयों और बहन को इतना प्यार करती थी, कि सबकी कमी पूरी हो जाती थी।
खुशी जो उनसे कह देती, उनके लिए पत्थर की लकीर हों जाती।
बड़े आनन्द पूर्वक जिंदगी गुजर रही थी।
खुशी ने जवानी की दहलीज पर कदम रख दिए थे।
खुशी, ठंड की गुनगुनी धूप सी बेहद खूबसूरत, गर्मी में चलने वाली ठंडी हवा सी शीतल, कान्हा की बांसुरी सी सुरीली थी। जो भी उसे देखता, दीवाना हो जाता।
जितनी वो खूबसूरत थी, उतनी ही होशियार भी। उसने first attempt में ही PCS clear कर लिया था।
खुशी की उम्र, शादी योग्य हो गई थी, माँ ने कहा, बिटिया अब हम चाहते हैं कि तुम्हारी शादी कर दें। तो तुम बताओ क्या करना है?
खुशी ने कहा, माँ आप जाने क्या करना है, यह कहकर, खुशी ने शादी की बात, अपने मां-पापा के ऊपर छोड़ दी थी।
उसकी शादी के लिए बहुत से रिश्ते आने लगे।
कुछ बड़े officers के, कुछ बड़े bussinessman, कुछ NRI के...
जिम्मेदारी मां-पापा के ऊपर थी, तो वो भी खूब देख-परख कर रिश्ता तय करना चाह रहे थे।
काफ़ी लड़ाकों को reject करने के बाद, finally उन्हें वो मिल गया, जिसकी उन्हें तलाश थी।
लंबा ऊंचा कद, sharp features, जितनी खुशी खूबसूरत थी, अनंत उतना ही smart. उसने भी first attempt में IAS clear कर लिया था।
यूं कहें कि दोनों, एक दूसरे के पूरक थे, तो कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी...
माँ को सबसे ज्यादा प्रसन्नता तो, इस बात की थी कि दामाद अपने ही शहर का मिल गया था। अब सारी उम्र खुशी उनसे मात्र 30 मिनट की दूरी पर रहेगी।
बड़ी धूमधाम से खुशी और अनंत की शादी कर दी गई।
शादी के बाद खुशी, अपने ससुराल चली गई और पीछे छोड़ गई, ऐसा सूनापन, कि मेहमानों से खचाखच भरे घर में भी सबकी निगाहें बस खुशी को ही ढूंढ रही थी।
अगले दिन शाम को reception था। तो सोचा जा रहा था कि किस को ले जाएं और किसको छोड़ दें?
सबमें से कोई भी खुशी से मिलने का मौका नहीं गवाना चाह रहा था, इसलिए ना चाहते हुए भी 50-60 लोग हो गये।
इतने सारे लोगों के साथ, reception में जाना पापा को अच्छा नहीं लग रहा था, क्या कहेंगे, खुशी के ससुराल वाले, सोच सोच कर वो परेशान हो गए।
आखिरकार उन्होंने खुशी के ससुर जी को फोन लगा दिया...
आगे पढ़े, बंटवारा प्रेम का ( भाग - 4) में