आज आप सब के साथ मुझे भोपाल के मेज़र नितिन तिवारी जी की कविता को साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।
आज नितिन जी की लेखनी में वो दर्द उभर कर आया है, जो कि हर भारतीय सैनिक के मन में उठता है। क्योंकि दुश्मनों से लड़ने वाले वीर फ़ौजी, त्यौहारों में अपने परिजनों से दूर रहने पर कुछ पलों के लिए बेहद संवेदनशील हो जाते हैं।
उसकी कैसी दीवाली
सभी पर्व तिथियों तक सीमित,
आते याद दिलाने को,
आते आकर जाते भी हैं,
आते ही हैं, जाने को।
टूटा मरा हुआ है जिसका मन,
उसकी कैसी दीवाली,
अंतरमन में यदि होली जलती,
तो बाहर कैसी दीवाली?
अपना जीवन परवश काट रहा जो,
उसे मनाने को है क्या,
देख दिखावा औरों का वह,
उससे क्या सुख पा सकता वो ।
जिसके पास नहीं हो पैसा,
उसको नूतन वसन कहाँ,
दीपक तेल और बाती का,
कर ले पावन मिलन कहाँ?
जिसका कोई सुजन नहीं है,
साथी किसे बना सकता,
भरी भीड़ में हो एकाकी,
कैसै मेल मिला सकता?
पैसा साधन पास सभी कुछ,
किन्तु उसके पास नहीं कोई संगी साथी,
औरों को नित कोस-कोसकर,
भले दान दे दे हाथी।
कैसे सुख पा सकता है वह,
कैसी उसकी दीवाली,
भले प्रदर्शन कितना कर ले,
अंतरमन तो रहता खाली।
किसी-किसी के हाथ नहीं कुछ,
किन्तु बहुत है दिल वाला,
उसकी नित रंगों की होली,
रात दियों की नव माला।
जो संयमी धैर्य से सुरभित,
सबको अपना कहता है,
औरो के सुख-दुख में भागी,
साथ दुखी के रहता है।
दिल औरों का नहीं जलाये,
दीवाली सचमुच उसकी,
औरों के घर दिये जलाये,
सही दिवाली है उसकी।
सज्जन लोगों के घर मैने,
रोज दिवाली देखी है,
दुर्जन के घर नित्य कष्ट की,
मैंने भीषण होली देखी है।
🇮🇳 जयहिंद 🇮🇳
🇮🇳भारतीय सैनिक 🇮🇳
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आप सभी को नरक चतुर्दशी, रुप चौदस व छोटी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐