थोड़ा राम बन जाते हैं
आया शुभ दशहरा,
क्या हम इतना कर पाएंगे?
भीतर के रावण को जलाकर
मन में राम जगाएंगे?
मन के भीतर बसा है रावण,
मन के भीतर बसा है रावण,
हम पुतले को जलाते हैं।
धनुष मात्र उठा लेने से,
क्या हम राम बन जाते हैं?
राम गुणों की खान हैं,
राम गुणों की खान हैं,
हिंदूत्व की शान हैं,
बहुत ना अपना सकें तो,
कुछ ही हम अपनाते हैं।
पिता के वचन की खातिर,
पिता के वचन की खातिर,
वो राजसुख छोड़ आए।
मात-पिता की सेवा से,
हम भी मुख ना चुराएं।
भ्रातृ-प्रेम की अमरता के,
भ्रातृ-प्रेम की अमरता के,
अमिट मिसाल वो कहलाएं।
अपनों को एक में जोड़ कर,
कुछ राम-गुण लें आएं।
गुरुओं को दें अनन्त सम्मान,
गुरुओं को दें अनन्त सम्मान,
वो परम शिष्य थे कहलाए।
गुरु को वो ही मान,
पुनः हम सब दिलवाएं।
पर-स्त्री सम्माननीय है,
पर-स्त्री सम्माननीय है,
उनका कथन महान कहलाए।
रक्षा करें हर स्त्री की,
किसी का हनन ना होने पाए।
आओ इस दशहरे में,
आओ इस दशहरे में,
कुछ उनके गुणों को अपनाते हैं।
पूरा तो नहीं बन सकते,
पर थोड़ा राम बन जाते हैं।
दशहरे के पावन दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।।।