Wednesday 24 July 2024

Poem : छोटी बूंद

सावन में, मेघों का छाना, वर्षा का आना, और वृक्षों का लहराना, मन को सुख की अनुभूति से भर देता है। 

वो सुख, धरा का भी है, नदियों का भी है, वृक्षों का भी है और हम सबका भी है। 

आइए, इन छोटी बूंदों के संग, उस सुख को प्राप्त कर लें।

छोटी बूंद

तरस रही थी धरा,

जो एक छोटी बूंद को, 

वो आज तर भीग गई।

अधर‌ ही नहीं, 

कंठ तक मानो,

अमृत से वो सींच गई।


नीर बिन कैसी नदिया, 

बैठी-बैठी सोच रही थी।

घनघोर घटा छाई जब नभ पर, 

मन में सिरहन सी कांप गई,

आलिंगन कर लेगी छोटी बूंदों का,

अपने सुख को भांप गई।


अपनी दोनों बाहें फैला कर,

वृक्ष भी कर रहे हैं स्वागत,

मंद सुगंध अविरल पवन ने, 

दी है उन छोटी बूंदों की आहट।

प्रेम प्रीत और मिलन संग,

तीज-त्योहारों की गर्माहट।


जल‌ ही है जीवन,

बहता जाए, कल-कल अविरल, 

कभी नभ पर, कभी धरा पर,

नदियों में बहता रहें हर पल।

दिख जाती है छोटी बूंद जो,

सुख का बन जाती प्रतिफल।