समस्या : बच्चों को मेहनत का मूल्य समझना
कहानी : मेहनत का मोल
अंशुल अपने Mummy Papa
के
साथ Delhi में रहता था, हर गर्मी की छुट्टियों में वो लोग
घूमने जाते थे।
Papa, इस बार, हम लोग कहाँ घूमने जाएंगे? नहीं बेटा, हम लोग इस बार, कहीं घूमने नहीं जाएंगे, मुझे और तुम्हारी Mummy
को
इस बार कुछ काम से गाँव जाना है, 1 से 1½
महीने
लग जाएँगे, तुम्हें नानी के घर
छोड़ देंगे।
पापा गाँव क्या होता है? मुझे भी वहीं चलना है। बेटा गाँव में तुम्हारे साथ कोई खेलने
वाला नहीं होगा, वहाँ बिजली पानी भी
ठीक से नहीं आते हैं, वहाँ तुम्हें A.C. नहीं मिलेगा। Papa तब भी मैं चलूँगा। Mummy
बोलीं, “इतनी
जिद्द कर रहा है, तो ले चलते हैं, इसका मन नहीं लगा तो इसके
मामा ले जाएंगे
इसे”।
अंशुल पहली बार गाँव आया
था, उसके Mummy
Papa
तो काम
में लग गए, और अंशुल को अपने खेत के कामगर,
हरिया के पास छोड़ देते थे।
अंशुल एक दिन हरिया के साथ
अपने खेत गया, उन लोगों के खेत में tubewell के पास
एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था, उसी से लगा एक
कच्चा कमरा था, अंशुल को हरिया
वहीं ले गया। कमरा बहुत ठंडा था, अंशुल ने घूम-घूम के देखा, पर उस कमरे में न तो A.C. लगा था, ना पंखा। उससे रहा ना गया, उसने पूछा चाचा इसका A.C.
कहाँ है, वो बोले यहाँ A.C., पंखा
कुछ नहीं
है, एक तो कच्चा कमरा है, साथ ही tubewell और बरगद के पेड़ के
कारण इतना ठंडा है।
चाचा आप कहाँ जा रहे हैं? बेटा मैं खेत जोतने जा रहा
हूँ। खेत जोतना क्या होता है? खेत की कड़ी
मिट्टी को मुलायम करना खेत जोतना होता है।
इतनी धूप में चाचा? अरे बेटा, धूप-छाँव देखेंगे तो काम नहीं हो पाएगा। चाचा मैं भी चलूँ? नहीं बेटा,
तुमसे नहीं होगा। पर अंशुल नहीं माना, चाचा थोड़ा सा ही कर लेने दो...
हरिया खेत जोतने लगा और बहुत ही छोटे
हिस्से को अंशुल ने हरिया के साथ जोता, पर खेत की चिलचिलाती धूप ने उसे बुरी तरह से थका दिया और ज़मीन की कठोरता
से उसके हाथों में छाले पड़ गए।
अगले दिन हरिया खेतों में
बीज और पानी डालने गया, तो अंशुल भी अपने हिस्से
में बीज और पानी
डालने गया।
अब तो रोज़ ही वो और हरिया खेत आते, क्योंकि ना तो Mummy Papa
के पास
उसके लिए time था, ना वहाँ उसका कोई दोस्त था।
अंशुल वहीं कमरे में खेलता, कभी खेतों को निहारता, और साथ साथ में हरिया से रोज़
पूछता, “पौधे कब
निकलेंगे?”
हरिया रोज़ कहता, “बाबू निकल
आएंगे”, एक हफ़्ते बाद छोटे छोटे पौधे निकल
आए, उन्हें देख कर
अंशुल बहुत खुश हुआ। रोज़ खेत में पानी
डालना होता था।
दस दिन में पौधे कुछ
बड़े हो गए थे, पर ये क्या? ना जाने और कौन-कौन
से पौधे भी निकाल आए थे, “चाचा, ये क्यों निकल आए? हमने तो इन्हें नहीं
लगाया था?”
“निकलते हैं, बेटा इन्हें हटाना पड़ता है, अंशुल ने अपने
हिस्से के जंगली पौधे निकाले, कुछ में कांटे भी थे, जो उसे चुभ गए। ऐसा डेढ़ महीने तक चला। Papa
mummy के सारे
काम भी हो चुके थे। अंशुल के दिल्ली लौटेने का समय आ गया था।
उसने हरिया से पूछा, चाचा फसल कब कटेगी? वो बोले बेटा, अभी तो तीन महिना और लग जाएगा।
कई बार “खाना अच्छा नहीं लग
रहा है” यह कह कर वो खाना छोड़ दिया करता था। पर
आज उसे समझ आ गया था, कि उसे उगाने में
कितनी मेहनत पड़ती है।
माँ पापा ने अंशुल से पूछा, “कैसा लगा
गाँव में?”
अंशुल बोला Papa.
farmer uncle कितनी मेहनत करते हैं, तब हमें खाना
मिलता है, हाँ बेटा, फिर तुम्हारी mummy, भी उसे बहुत
मेहनत और
प्यार से बनाती हैं।“
“पापा, अब से
मैं कभी खाना नहीं छोड़ूँगा। और अपने सारे दोस्तों को भी farmer
uncle की मेहनत का मोल बताऊंगा।“
“Good बेटा, ऐसा सब
सोच लें, तो देश में अन्न की कभी कमी नहीं रहेगी, कोई भूखा भी नहीं रहेगा। और देश भी खुशहाल रहेगा।”