ज़िन्दगी बड़े शहरों की
किशन सिंह के दो बेटे थे, राघव और राजन। दोनों ही बड़े मेहनती थे, पर राघव महत्वकांक्षी भी था।
किशन सिंह जी बहुत धनवान और सुलझे हुए इंसान थे, उनकी गांव में अच्छी साख थी, वह अपने दोनों बेटों से बहुत खुश थे। भरा-पूरा परिवार था, अड़ोस-पड़ोस से अच्छे संबंध थे। जीवन सुखमय व्यतीत हो रहा था।
जब दोनों लड़के विवाह योग्य हुए तो उनके सुयोग्य कन्याओं से विवाह करा दिया गया।
दोनों ही बहुएं भी घर में ऐसे रम गयीं कि घर की बहुएं कम बेटियां ज्यादा लगती थीं।
एक दिन राघव ने अपने पिता जी से कहा, मुझे बड़े शहर जाना है, अपनी किस्मत आज़माने...
किशन सिंह जी बोले, गांव में ऐसी कौन सी कमी है, जो तुम बड़े शहर में जाना चाहते हो?
पिता जी, मैं वहाँ की जिंदगी जीना चाहता हूंँ।
कुछ नहीं रखा वहाँ, सिवाय बेमतलब की चकाचौंध और अंतहीन तन्हाई और हार के।
वो बिरले ही होते हैं, जो वहांँ कुछ पाते हैं, पर वो अपनों से और अपने आप से भी दूर हो जाते हैं।
ना तो उनके पास अपनों के लिए समय होता है ना अपने लिए।
जो तुम बहुत कुछ इकट्ठा कर भी लोगे, वो सिर्फ और सिर्फ दिखावे के लिए ही होगा। और दिखावे का तो कोई अंत नहीं होता है।
बहुत समझाने के बाद भी राघव के मन से बड़े शहर जाने का मोह नहीं गया।
किशन सिंह जी ने राघव को बुलाया और कहा कि ठीक है, तुम चले जाओ बड़े शहर, पर हाँ, वहाँ पहुंच कर तुम वो ना पाओ, जिसकी चाह में तुम वहाँ जा रहे हो।
तो कभी भी हारने पर कुछ ग़लत काम मत करना, तुम बिना किसी ग्लानि के वापस आ जाना।
तुम्हारा एक ग़लत कदम, मुझे जिंदगी भर के लिए हार प्रदान करेगा। मेरी इतनी बात तो मान लोगे ना?
जी बिल्कुल पिता जी...
किशन सिंह जी ने राजन को भी बुलाया और पूछा कि राघव बड़े शहर जाना चाहता है, क्या तुम भी जाना चाहते हो?
राजन बोला, मुझे अपने गांव, अपने लोग, अपने घर से अच्छा दुनिया में कुछ नहीं लगता है।
किशन सिंह जी बोले, ठीक है, मैंने आज अपनी धन-सम्पदा के चार टुकड़े करने के सोचे हैं।
एक मेरा और तुम्हारी मां का, एक राजन और उसकी पत्नी का, एक राघव और उसकी पत्नी का।
पर चौथा क्यों? राघव ने पूछा...
वो हिस्सा उसके लिए, जिसको ज़िन्दगी के किसी...
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