कीमत (भाग-1) .... और
कीमत (भाग-2) के आगे.....
कीमत (भाग -3)
कंगना ने सचिन से पूछा, भैया एक बात समझ नहीं आयी कि आप ने बिल के साथ वो कागज़ क्यों दिया?
सचिन बोला, आप लोगों का साथ ऐसे ही थोड़ी ना छोड़ दूंगा।
वो कागज़ नहीं था, वो मान था।
मैं नहीं चाहता था कि, मैं कहूं कि अगर आप के पास अब दूध लेने जितनेे पैसे नहीं हैं, तो मैं दूध के दाम आधे कर दे रहा हूं।
इससे लोगों के सम्मान को ठेस पहुंचती। इसलिए मैंने बिना किसी को कुछ कहे, अपने दूध के दाम आधे कर दिए। जिसके लिए वो कागज़ दिया था।
जिससे लोगों का मान भी बरकरार रहे और उनको दूध की कमी भी ना हो।
पर आप तो कभी....
Madam, आप लोगों के साथ अच्छा समय बिताया है, तो क्या बुरे समय में साथ छोड़ देंगे?
पर आप तो एक पैसा कम नहीं करते थे, अब आधे दाम में दूध कैसे दे देंगे? अब आपको धनवान नहीं बनना है?
Madam, धनवान मैं इसलिए ही बनना चाहता था, जिससे मैं बुरे समय में सबके काम आ सकूं।
और हम गांव वाले हैं madam, हमें दूसरों की मजबूरी से फायदा उठाना नहीं आता है।
धन का क्या है, मेरी गाय सलामत रहें, फिर इकठ्ठा हो जाएगा।
पर भैया, इतने सारे घर से आधे दाम लेंगे तो आपका काम कैसे चलेगा?
भैया बोलते हो आप सब हमें। अब बहनों का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा।
जब तक चलेगा, चलाएंगे। नहीं तो बोरिया बिस्तर समेट कर गांव लौट जाएंगे।
सच भैया, सब आप को बहुत सख्त समझते थे, पर आप तो बड़े महान हैं।
जब सबके पास था, तो लिया। आज जब नहीं है तो सबके लिए अपना लुटा दिया।
सच है, आज भी इन्सानियत की कीमत आप जैसे महान लोग ही जानते हैं।
आपको salute है मेरा।