सच्चा सोना (भाग -2) के आगे...
सच्चा सोना (भाग -3) अंतिम भाग
रितेश सब लेकर अपनी माँ के पास पहुंँचा। माँ की आंखें इतना सोना देखकर फटी की फटी रह गई, वो बोली बेटा, हमारे दुःख के दिन बीत गए हैं। तुझे देवता पुरुष मिला था जा उसी के पास जा, वह तुझे अच्छा काम देगा।
अगले दिन रितेश रतन सिंह के पास पहुंचा।
आओ आओ, रितेश मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।
रितेश ने रतन सिंह को धन्यवाद दिया और बोला, मेरी मां ने कहा है कि मैं आपसे काम मांगू पर मैं आपके यहाँ, काम करने से पहले आपकी आपबीती सुनना चाहता हूँ।
क्या आप मेरी यह विनती स्वीकार करेंगे?
रतन सिंह हंस कर बोला, बिल्कुल, तुम्हें पूरा अधिकार है, तुमने मेरे जीवन को बचाया था।
बात तब की है, जब मैं भी तुम्हारी तरह गरीब, सीधा-साधा, कर्मठ व्यक्ति था।
एक दिन मैं काम की तलाश में निकला था, तो मुझे एक बड़े से घर से एक व्यक्ति निकलता हुआ दिखाई दिया।
वो व्यक्ति, घर से निकलकर थोड़ी दूर गया और एक जगह रुक गया और वहीं जमीन पर बैठ गया।
मैं उसके नजदीक गया तो देखा कि वो तो हमारे गांव के महेंद्र सिंह सुनार हैं।
वो बहुत थके और बीमार लग रहे थे।
मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ?
तो उन्होंने कहा कि, मुझे एक सच्चे और ईमानदार इंसान की तलाश है, जो उनके सोने के व्यापार को अच्छे से चला सके। जिससे वो आगे का जीवन सुख से बिता सकें।
मैं, काम की तलाश में था, मैंने कहा, आप मुझे आज़मा सकते हैं।
सेठ जी खुश हो गये, उन्होंने मुझे अपने यहाँ रख लिया। मैंने भी पूरी मेहनत और ईमानदारी से उनका काम सम्भाल दिया। साथ ही उनकी खूब सेवा की, जिससे वो पूर्णतः स्वस्थ भी हो गये।
मैं खूब जतन से सोने का व्यापार चलाता और सेठ जी चैन से सोते। सेठ जी और मैं दोनों खुश रहने लगे।
कुछ साल बाद सुख पूर्वक दिन व्यतीत कर के सेठ जी स्वर्ग सिधार गए और फिर मुझे व्यापार का मालिक बना दिया गया।
मैंने दिन-रात मेहनत कर के सोने के व्यापार को चार गुना बढ़ा दिया। पर इस कारण से मेरा सुख-चैन, नींद सब कहाँ चला गया, मुझे पता ही नहीं चला।
बस मुझे इसी बात की धुन रहती कि थोड़ा और सोना इकठ्ठा हो जाए।
इससे मेरी तबियत ख़राब रहने लगी।
उस दिन भी मैं एक जगह से सोना लेने के लिए ही निकला था, वो जगह पास ही थी, अतः मैं पैदल ही निकल गया था। पर मेरी तबियत ख़राब होने के कारण मैं, भटक गया था और किस रास्ते आ गया था, मुझे नहीं पता।
और तब तुम मुझे मिले, तुमने खाने के लिए, मुझे रुखी-सूखी रोटी, आलू-प्याज नमक मिर्च, और पीने के लिए कुंए का ठंडा पानी दिया। उसके बाद मैं शाम तक सोता रहा।
उस दिन मैंने समझा, कि सच्चा सोना, बहुत सारा gold नहीं है, बल्कि भूख मिटाने वाला भोजन, और चैन से सोना (नींद) ही है।
जो मैंने महेंद्र सिंह जी को दी थी, जिसके बदले वो मुझे अपना सोने का व्यापार दे गये।
यह है, मेरी आप बीती। रितेश क्या तुम मेरे साथ काम कर के, मुझे सच्चा सोना ( चैन की नींद) दे सकते हो?
रितेश बोला, दे तो सकता हूँ, पर अगर आप यह ना सोचो कि मैं भी आपकी तरह सोना बढ़ाने में अपना सच्चा सोना (भरपूर नींद) खो दूंगा।
मुझे अपनी नींद से बढ़कर कुछ नहीं चाहिए। वो भी तब तो मैं बिल्कुल नहीं छोड़ूंगा, जबकि मैं जान चुका हूँ कि सच्चा सोना (चैन की नींद) ही है।
रतन सिंह, जोर से हंसा और बोला, भाई जो गलती मैंने की थी, मैं नहीं चाहता हूँ कि कोई भी और व्यक्ति करें। हमें जीवन उपयोगी धन अवश्य अर्जित करना चाहिए। पर अपनी कभी नहीं खत्म होने वाली इच्छाओं को इतना नहीं बढ़ाना चाहिए कि उसको पूरा करने में जीवन के सच्चे सोने (चैन की नींद) को ही खो दें।
मुझे बस एक सहायक चाहिए, जिसके साथ मिलकर मैं अपना अब तक का जितना व्यापार है, उसे सुचारू रूप से चला सकूं। साथ ही किसी एक को सक्षम भी बना सकूं।
और उसके लिए, मुझे तुम उपयुक्त इंसान लगे। अगर तुम चाहो? रितेश ने खुशी-खुशी हामी भर दी।
उसके बाद रतन सिंह और रितेश दोनों को हमेशा के लिए सच्चा सोना (चैन की नींद) मिल गया था।