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इच्छा (भाग- 2)
वो भी हाथ में एक English novel लेकर बैठी थी, और बस उसे ही पढ़ रही थी, किसी से कुछ भी बात नहीं कर रही थी।
मेरा station आ गया था, और उसका destination भी। मेरी नज़रों ने उसे बहुत
दूर तक विदा किया, जब वो आँखों से ओझल हो गयी, मैं भी भारी मन से घर की तरफ चल दिया।
घर में माँ मेरा बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। मेरे
घर पहुँचते ही माँ बोली, बेटा अगर तू बुरा ना माने, तो लड़की को आज ही बुला लूँ?
मेरे मन में तो वही बसी थी, फिर भी सोच कर आया था, माँ जिससे कहेगी, उसे हाँ कर दूंगा। तो बोल दिया, माँ आपका जब मन करे, बुला लें।
शाम को ही वो लोग आ गए, माँ ने बैठक से ही आवाज़ दी, विनय बाहर आ जा बेटा।
मैं जब बैठक में आया, तो अपना दिल थाम कर बैठ गया। यह तो वही
लड़की थी। पर अभी वो सलवार-सूट में थी, उसकी लहराती जुल्फें
उसे और हसीन बना रही थीं।
आज तक ईश्वर ने मेरी इतनी जल्दी कभी नहीं सुनी थी। मैंने ऊपर वाले का लाखों धन्यवाद किया, कि जिसे चाहा, वही मिल भी जाएगी।
शर्मा आँटी उसके गुणों का बखान कर रही थीं, कि विजया का जैसा नाम है, वैसी ही वो है भी, हर काम में नंबर 1 पर। जितनी यह आज-कल की लड़कियों जैसी पढ़ने-लिखने में
होशियार है, और बड़ी farm में job
कर रही है, उतनी ही हमारे जैसी, सिलाई, कढ़ाई-बुनाई और रसोई बनाने में भी निपुण है।
ओह! तो नाम विजया है, तभी इसने
मेरे मन को एक बार में ही जीत लिया था।
माँ भी लड़की के गुण सुन कर निहाल हुई जा रही थी।
जैसी अच्छी बहू की कल्पना कोई सोच सकता था, वो उससे भी अच्छी
थी। और मैंने तो उसे जैसा समझ कर प्यार किया था, वो उससे भी
कहीं ज्यादा काबिल थी।
फिर माँ ने कहा, अरे
शर्माइन......
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