काशी-विश्वनाथ मंदिर
राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखने की अपार सफलता के पश्चात भारत में हिन्दुत्व विजयी रथ काशी की ओर अग्रसित हो चुका है।
Civil court द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर के परिसर में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के लिए पुरातात्विक सर्वेक्षण का फैसले दे दिया गया है।
यह फैसला इंगित कर रहा है कि हिन्दू सशक्तीकरण का युग चल रहा है। आने वाले समय में देखने को मिलेगा कि भारत हिंदू राष्ट्र बन गया है।
Civil court द्वारा दिए गए फैसले का क्या परिणाम होगा, वो तो भविष्य में ही ज्ञात होगा।
पर हम यह समझ लेते हैं, इस सारे विवाद का कारण क्या है? या दूसरे शब्दों में कहें तो यह जान लेते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर इतिहास क्या है? उसका अस्तित्व क्या है?
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित भगवान शिव का यह मंदिर, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख, काशी विश्वनाथ मंदिर, अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है, इसीलिए आदि लिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। यह गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है।
11वीं सदी में राजा हरिश्चन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। तदोपरांत, उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।
जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में पुनः इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया।
बादशाह अकबर के ज़माने में एक बार वाराणसी और उसके आस पास बहुत भयंकर सूखा पड़ा था. बादशाह ने सभी धर्म गुरुओं से बारिश के लिए दुआ करने का आग्रह किया. एक आग्रह वाराणसी के धर्म गुरू नारायण भट्टा से भी किया गया. नारायण भट्टा के दुआ करने पर 24 घंटे में ही बारिश हो गई. इससे बादशाह अकबर बहुत खुश हुए.
नारायण भट्टा ने बादशाह से भगवान विशेश्वर का मंदिर बनाने की इजाजत मांगी. बादशाह अकबर ने अपने वित्त मंत्री राजा टोडर मल को मंदिर बनाने का आदेश दिया और इस तरह भगवान विशेश्वर का मंदिर ज्ञानवापी इलाके में बन गया.
ये पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है. मान्यता के मुताबिक, खुद भगवान विशेश्वर ने यहां अपने त्रिशूल से गड्ढा खोद कर एक कुआं बनाया था जो आज भी मौजूद है.
लेकिन वर्ष 1632 में शाहजंहा ने इसे तुड़वाने के लिए सेना की एक टुकड़ी भेज दी। हिंदूओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण सेना केंद्रीय मंदिर को तो नहीं तोड़ सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए।
इतना ही नहीं 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को ध्वस्त कराने के आदेश दिए थे। साथ ही ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश पारित किया था।
उसके बाद काशी विश्वनाथ मंदिर पर East India Company का राज हो गया, जिस कारण मंदिर का निर्माण रोक दिया गया। फिर साल 1809 में, मंदिर को तोड़कर बनाई गई ज्ञानवापी मस्जिद पर हिन्दुओं ने कब्जा कर लिया।
इस प्रकार इतिहास के अनुसार काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण और विध्वंस की घटनाएं 11वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक चलती रही। हालांकि 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी Mr. Watson ने ‘Vice President in Council’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने के लिए कहा था, लेकिन यह कभी संभव ही नहीं हो पाया। तब से ही यह विवाद चल रहा है।
मंदिर का इतिहास बताता है कि, किस कदर भारतीय संस्कृति को ध्वस्त करने की कोशिश पीढ़ी दर पीढ़ी की गई है।
पर अब समय बदल गया है, सरकार बदल गई है और लोग भी बदल गये हैं; जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, मंदिरों का भव्य निर्माण व हिन्दू सशक्तीकरण!
🙏🏻हर हर महादेव, साथ रहें सदैव🙏🏻