Monday 31 December 2018

Poem : साल 2018 अलविदा

साल 2018 अलविदा



था नवीन, जो कभी
अब हुआ पुराना है
स्वागत किया था, जिसका
वो अब जाने वाला है
सृष्टि की  नियति यही है
चिरकाल तक यहां पर
कौन, रुकने वाला है
था जब, आज वो
स्वपन थे कितने पिरोये
कुछ टूटे, कुछ रहे अधूरे
पर कितने पूरे भी हुए
उन पूरे हुए स्वप्न में
तुमने फ़र्ज़ था, किया अदा
जाते जाते देख तुझको
निकले दिल से ये सदा
याद बनकर, तुम रहोगे
साल 2018 अलविदा
आए थे तो, किया स्वागत
जाते हो तो, लो नमन
खिलेंगी नयी कलियां
महकेगा फिर से चमन