सोच का अंतर
कल किसी काम से एक office जाना हुआ, जहां हर तरह के लोग मौजूद थे।
गरीब, मध्यम वर्गीय, अमीर और बहुत अमीर...
वहीं हम सबके बीच में एक गरीब व्यक्ति था, जिसने अपने जीवन भर की कमाई उस कार्य के लिए दी हुई थी।
यहां बड़े बड़े लोग आएंगे तो उन सब के बीच में उसकी कोई बात नहीं सुनेगा, इसलिए वो नहा-धोकर करीने से अपने बाल बनाया हुआ था, वो अपने सबसे मंहगे कपड़े पहन कर आया था।
पर क्योंकि उसने सारी पूंजी तो उस कार्य में निवेश कर दी।
इसलिए उसके मंहगे कपड़े भी बहुत अच्छी अवस्था में नहीं थे।
उसने एक पुरानी जींस पहन रखी थी, जो जगह जगह से घिसी-पिटी और फटी हुई थी। साथ में तुड़ी मुड़ी सी शर्ट...
हम सब के बीच वो बिल्कुल भी comfortable नहीं था। वो ऐसे बैठा था कि जहां जहां से उसकी जींस फटी हुई थी, उन्हें छिपने के लिए, उस पर या तो उसने लाए हुए सामान रखे हुए थे या अपने हाथ।
उसकी इन सब हरकतों के कारण, और लोग भी उसे हिकारत भरी नजरों से देख रहे थे, उससे सब दूरी बनाकर बैठे हुए थे, कोई भी उससे बात नहीं कर रहा था।
गरीब लोगों से बात करना, भला पसंद भी कौन करता है?...
मुश्किल से आधा घंटा गुजरा होगा, तभी एक आदमी, Mercedes से आया, उसके driver ने उसकी तरफ का दरवाज़ा खोला, जब वो उतर गया तो उसके साथ में एक और आदमी उसके काम की files लेकर उतरा।
उस अमीर आदमी के बाल बिखरे हुए थे, उसने branded ribbed jeans and crumbled T shirt पहनी हुई थी।
जब वो अंदर आया तो room में एक भी seat खाली नहीं थी। वो इधर उधर देख रहा था कि किधर बैठे।
तभी उस office के guard ने गरीब आदमी से चिल्ला कर कहा, तू क्या कर रहा है, यहां सबके साथ बैठकर? चल हट यहां से।
वो आदमी शालीनता से बोला, मैं भी उसी काम से आया हूं, जिसके लिए सब आएं हैं।
चल उठ, बड़ा आया सबसे बराबरी करने वाला, कहकर लगभग खींचते हुए guard ने उस आदमी को उठा दिया।
अमीर आदमी ने guard से कुछ नहीं बोला, बस घूर कर देखा, जैसे पूछ रहा हो, मैं यहांँ बैठूंगा?
Guard सकपका कर बोला, 1 minute.. और वो दौड़कर एक कपड़ा और साफ towel लेकर आया...
उसने पहले कपड़े से कुर्सी साफ की, फिर उस पर साफ़ towel बिछा दी।
अब वो आदमी गर्व से उस कुर्सी पर तनकर बैठ गया। उसके बाद पास बैठा हर कोई उस आदमी से बात करने को उत्साहित होने लगा।
वो गरीब आदमी, दूर खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करने लगा।
मैं भी अपनी बारी आने का इंतजार कर रही थी। समय काटने के लिए नज़र इधर उधर घूमती हुई, उन दोनों आदमी पर टिक गई।
जब मैंने ध्यान दिया तो पाया, दोनों ही आदमी एक ही तरह के कपड़े पहने थे।
घिसी-पिटी, फटी हुई जींस और सिकुड़ी- मुकडी़ शर्ट...
फिर भी लोगों के व्यवहार अंतर में...
गरीब आदमी ने वो कपड़े अपनी बदहाली और मजबूरी में पहने थे, जबकि अमीर आदमी ने वो कपड़े fashionable wear की तरह से पहने थे। उसने उन कपड़ों पर हजारों खर्च किए थे।
गरीब आदमी उन कपड़ों के साथ अपने आपको अपमानित महसूस कर रहा था, वो बराबर अपनी अवस्था लोगों से छिपाने की कोशिश कर रहा था।
वहीं वो अमीर आदमी उन कपड़ों को अपनी शान समझ रहा था। वो ऐसे बैठा था कि उसकी ribbed jeans and crumbled shirt पर सबकी नजर जा रही था...
अमीर आदमी के देर से आने के बाद भी उसका number पहले आ गया, वो अपना काम करा के चलता बना। किसी ने भी उसके पहले काम होने पर कोई objection नहीं किया। सब उससे इतने influenced जो थे।
क्षण भर बाद, गरीब आदमी का भी number आ गया, वो ज्यादा बड़ा निवेशक था। उसके number आने पर मैनेजर ने उठकर उसको अभिवादन किया और उसका काम संपन्न किया... जब वो जा रहा था, guard का व्यवहार बदल चुका था, क्योंकि अब तक वो जान चुका था कि गरीब आदमी उसकी company को ज्यादा business देगा। Guard ने उससे क्षमा मांगते हुए उसे विदा किया।
हमारा भी number आ गया था, हम भी अपना काम करा के लौट आए।
हम लौट तो आए, पर मन में मंधन चलने लगा, कि आखिर क्या वजह थी, लोगों के व्यवहार के अंतर में.
कारण था, दोनों की सोच में अंतर...
हमारे साथ दूसरों का व्यवहार कैसा होगा, यह हम खुद निर्धारित करते हैं...
जब हम अपनी अवस्था से प्रसन्न और confident होते हैं, तो हमारी सोच भी positive रहती है।
जब हम positive होते हैं, जमाना भी हमारे साथ रहता है।
So be positive, be confident, be happy 😊