फ़र्ज़ (भाग-1) के आगे:
फ़र्ज़ (भाग-2)
डॉ. ईला ने रेखा की माँ को बुलाया, और कहा मैं तुम्हारी बेटी का इलाज नहीं कर पाऊँगी।
रेखा की माँ बोली, ऐसा ना
बोलिए डॉक्टर जी। मैंने आपका बहुत नाम सुना है, मेरी मजबूरी
समझिए, एक आप ही हैं, जो मेरी रेखा को
बचा सकती हैं।
ईला बोली, मेरी भी मजबूरी
है। मेरे एकलौते बेटे को भी, सिर्फ तुम्हारी बेटी ही बचा
सकती है। पर मेरे बेटे को बचाने में, शायद तुम्हारी बेटी की
जान चली जाए।
आप कैसी बात कर रहीं हैं, आप एक डॉक्टर हैं, रेखा की माँ दुखी होती हुई बोली।
हाँ, पर मैं एक माँ भी हूँ...... और अपने जिगर के टुकड़े को डॉ. होते हुए भी, नहीं बचा पा रहीं हूँ। आज पहली बार report देख कर मेरा हाथ काँपा है, मुझसे नहीं होगा अब treatment।
ये कहते हुए ईला की आँखें आँसूओं से भर गयी। सुन कर रेखा की माँ रोने
लगी। ईला, रेखा और उसकी माँ को वहीं रोता छोड़ कर अपने cabin में
चली गयी।
तभी रेखा का पिता अखिल भी आ गया, उसे जब सब बात पता चली तो, वो डॉ. ईला के cabin में चला गया। उसने ईला से कहा, डॉक्टर जी मैंने आपका बहुत नाम सुना है, आप ने कितनों
का भला कर दिया।
शायद, भगवान ने आपसे खुश होकर मेरी बेटी को
यहाँ लाया है। आप मेरी बेटी की सहायता से अपने बेटे का जो भी इलाज करना चाहती हैं, कर लीजिये।
पर उसमें रेखा की जान..... कहते कहते ईला का गला
रुँध गया।
मुझे बताया रेखा की माँ ने; मुझे और रेखा की माँ को ईश्वर और आप पर पूर्ण विश्वास है। आप बहुत अच्छी
डॉक्टर हैं, आप दोनों को बचा लेंगी। और अगर रेखा नहीं बची, तो हम इसे अपनी किस्मत समझ लेंगे। वैसे भी बिन इलाज के वो कहाँ बचने वाली
है। आपका बेटा बच जाएगा, तो भी हम समझ लेंगे, की रेखा का जीवन सार्थक हो गया। आप उसके बदले हमे कुछ पैसे दे दीजिएगा, तो मैं भी अपनी और बच्चियों को पाल लूँगा।
ईला, अखिल की बात बुत
बनी सुन रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, उसका बेटा तो बच
जाएगा, पर क्या उसके लिए एक मासूम की जान को खतरे में डालना
उचित है?..... फ़र्ज़ (भाग -3)
आप क्या कहते हैं, क्या करना चाहिए, डॉ. ईला को?