रिश्तों की हद (भाग -1) के आगे...
रिश्तों की हद (भाग -2)
कौन इतना झंझट पाले?..
जरुरत में तो हम भी एक दूसरे के काम आते हैं, वो क्या यह झंझट है श्यामली, रितिका ने प्रश्न किया?
नहीं रितिका मेरे कहने का मतलब तुम समझी नहीं...
क्या मतलब है तुम्हारा श्यामली?
जब तक शादी नहीं होती है, तब तक ही घर और परिवार होता है। एक बार शादी हो जाए, उसके बाद तो...
उसके बाद क्या?
ससुराल वालों के लिए तो कितना ही कर लो, वो कभी अपने नहीं होते...
तुम्हारे जैसा ही अगर तरूण भी सोचे, तब तो तुम्हारा भी परिवार छूट जाएगा।
हाँ... तभी तो हम लोगों ने अब सब से मतलब रखना ही छोड़ दिया है, श्यामली ने बड़ी ही लापरवाही से कहा..
अपने मां-पापा, भाई-बहनों को भूला पाना, इतना आसान है क्या?
वो तो हम लड़कियों को पीछे छोड़ कर आना ही होता है, कौन सा ससुराल वाले, यह पसंद करते हैं कि हम मायके से जुड़े रहें।
और जब उनसे नहीं जुड़कर रहना, तो इनसे जुड़कर क्या करना।
इनसे जुड़ो, फिर दुनिया भर के इनके नियम कानून मानों, इनके कहे जैसे, उठो-बैठो, यह सब,बस झंझट ही पालना है...
तो क्या तुम्हारे ससुराल वाले, बहुत ख़राब है?
ख़राब... वो तो मैंने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की...
क्या?
जानकर करना ही क्या है? जब हमें उनसे कुछ मतलब ही नहीं है...
जब जरुरत पड़ेगी, तब साथ कौन देगा?
साथ देने के लिए ही तो हो, तुम सारे दोस्त.. हमारे अपने, हम जैसी सोच वाले, दुनिया के दकियानूसी नियम कानून से परे...
कितनी खूबसूरत है यह दुनिया!
नहीं श्यामली, तुम ग़लत सोच रही हो..
क्या ग़लत? बताओ तो, क्या तुम सारे दोस्त, हमारे अपने नहीं हो? क्या तुम हमारी जरूरत में काम नहीं आओगे?
आगे पढ़े रिश्तों की हद (भाग -3) में...