आह
आज भी रात करवटों में ही गुजर गयी, आज भी किस्मत में केवल इंतजार ही रहा।
रह रह कर आंसू ढुलक जा रहे थे। पर उसे देखने, समझने वाला तो गहरी नींद में सोया हुआ था।
भरे पूरे घर में रहने वाली सृष्टि को पिया जी, वक्त निकाल कर और सबसे नज़र बचा कर, आकर छेड़ जाया करते। कभी उसकी जुल्फों से खेल जाते, कभी गोरे गोरे गालों को सहला जाते, कभी बाहों में भर लेते।
उनकी इन हरकतों से वो उन्हें झूठ-मूठ को झिड़क देती, पर उसका रोम रोम पुलकित हो जाता, मन में प्रेम हिलोरें लेने लगता था।
सृष्टि को पिया का सान्निध्य पाकर लगता कि वो कोई अप्सरा है या कोई बहुत सुन्दर सा पुष्प जिसके चारों ओर पतिदेव भंवरा बन मंडराते रहते हैं।
पर, इधर जब से कोरोना आया है, तब से पिया जी, ना जाने कौन सी दुनिया में रहने लगे हैं।
दिन भर कोरोना से जुड़ी कवायदों को करते करते, कब सुबह से शाम हो जाती, पता ही नहीं चलता है।
पिया जी, का सारे दिन का समय तो यह मुआ कोरोना ही ले जाया करता है और रात....... रात में तो जो बिस्तर में आ गिरते, तो इतने थके होते, कि कब गहरी नींद में सो जाते, वो तो उन्हें भी पता नहीं चलता।
सृष्टि मन में बस यही सोचती
खाली हाथ शाम आयी है, खाली हाथ जाएगी.....
और कमरा..... पिया जी के ज़ोर ज़ोर से आते हुए खर्राटों से गूंजने लगता, और साथ ही सृष्टि के इंतजार और दुःख भरी आह से!