होनी होकर रहती है (भाग - 1) के आगे...
होनी होकर रहती है (भाग- 2)
सब उस जगह पहुंचें, जहां ऐसा हुआ था, और जो उन्होंने वहां देखा, उसे देखकर सब हैरान रह गए...
उन्होंने देखा कि जहां राजकुमार की मृत्यु हुई थी, वहां पास में सांप का फन जैसा पड़ा था, जो रक्तरंजित था।
यह कहां से आया?
सब यह देख रहे थे, तभी साधू महाराज बोले, यह उस कलाकृति से आया है?
यह कैसे संभव है? रानी पीड़ा से भरकर बोली...
महामंत्री ने, बहुत ध्यान से कलाकृति देखी, तत्पश्चात् कलाकृति बनाने वाले कलाकार को बुलाया, उससे पूछताछ की, फिर पूरी घटना के तार जोड़े, उसके बाद राजमहल में पहुंचा।
महाराज, मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि, साधू महाराज की बात सत्य साबित हुई..
क्या कहना चाहते हो, साफ-साफ कहो? पहेलियां मत बुझाओ...
महाराज, जब पुष्प वर्षा की जा रही थी, तो उससे बहुत सारी कलाकृतियां हिल रही थी।
उन्हीं में से एक कलाकृति का हाथ थोड़ा मुड़ गया, साथ ही उसकी एक उंगली में एक तार निकल गया। जिससे ऐसी संरचना बनी, मानों कोई सांप अपनी विषैली जिह्वा निकाल कर बैठा हो।
और जैसे ही राजकुमार सिंहासन पर विराजमान हुए, वो कलाकृति ऐसी हिली कि वो हाथ राजकुमार के ऊपर गिर गया और राजकुमार की उसी क्षण मृत्यु हो गई।
तुम क्या कहानी सुना रहे हो? तार चुभने से कोई मृत्यु होती है।
महाराज, मैंने पूरा परिक्षण किया है, वो तार जिस स्थान से लाया गया था, वहां पर जहरीले फूलों का पौधा था। उसका एक फूल उस तार में लगा रह गया था।
कलाकार ने जल्दी बाज़ी में कुछ ध्यान नहीं दिया और वैसा तार ही मूर्ति को मजबूत करने में लगा दिया।
फिर वही हुआ जो होना था।
राजा ने सारी बातें सुनकर, साधू महाराज से अनेकानेक क्षमा मांगी। महाराज आपने मुझे अगाह किया था, पर मैं मूर्ख, अपनी सामर्थ्य पर विश्वास कर के ईश्वर के विधान को बदलने चला था।
राजन्, तुमने दुःख में मुझसे कहा था, मैंने उसका किंचित मात्र भी बुरा नहीं माना और ना ही तुम से क्रोधित हूं।
पर आज भी मैं यहीं कहूंगा कि, अच्छा हो या बुरा... होनी होकर ही रहती है, उसके होने के विधान अपने आप बन जाते हैं।
जैसे राजकुमार की मृत्यु सत्य थी, वैसे ही उसका जन्म होना भी सत्य था, तुम्हारा सुख और दुःख भी सत्य था। इसलिए मेरे अगाह करने के बाद भी सब घटना घटित हुई...
इसलिए सत्य को स्वीकार करो और आगे की सुधि लो, यह कहकर साधु महाराज अपने आश्रम की ओर प्रस्थान कर गए।