Friday 18 March 2022

Poem: वो बचपन वाली होली

आज बच्चों को रंग खेलते हुए देख, मन में बरबस ही अपने बचपन की याद आ गयी। तो सोचा आज उसी पर कलम चलाई जाए। शायद हमारे साथ आप भी बचपन के रंग में रंग जाएं और मीठी-मीठी सी यादों में खो जाएं।

तो आइए चलें, उस सुनहरी, दुपहरी सी होली में...


वो बचपन वाली होली


देख बच्चों में होली का उमंग,
याद आ गये अपने बचपन के रंग।
जब हम भी पिचकारी ले घूमते थे,
सारा दिन मस्ती में झूमते थे।।

हफ्तों पहले से माँ के संग,
चिप्स और पापड़ बनवाते।
मजाल है कि एक भी,
कौआ, गिलहरी वहाँ फटक पाते।।

फिर दौर चलता,
गुझिया और मठरी बनने का।
माँ और चाची के हाथों के,
स्वाद के घुलने का।।

दही बड़े और मालपुआ की,
बारी जो आती।
प्लेट की प्लेट,
साफ हो जातीं।।

होली के दिन हम,
ना होते अकेले।
चंद कदमों में बन जाते,
दोस्तों के मेले।।

जब रंगों से सराबोर होते थे हम,
तो केवल नहीं तन,
बल्कि स्नेह और सौहार्द्र से,
रंग जाते थे मन।।
 
होली मिलन में घर-घर जाना,
प्रेम के रंग में रंग जाना।
याद है वो बचपन की होली,
भुलाए नहीं भूलता वो जमाना।। 

आप सभी को रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐

हम सभी की जिंदगी, सफलता के रंग में रंगी रहे, प्रेम के संग में बनी रहे, सुख, समृद्धि और प्रसन्नता की जीवन में बौछार होती रहे, स्वस्थ व चिरायु का रहे मेल, जिंदगी में अपनों के साथ की मिठास बनी रहे।।

ईश्वरीय कृपा सब पर बनी रहे 🙏🏻💐