अब तक आपने पढ़ा जिंदगी बड़े शहरों की (भाग- 1) में...
अब आगे...
ज़िन्दगी बड़े शहरों की (भाग -2)
पर चौथा क्यों? राघव ने पूछा...
वो हिस्सा उसके लिए, जिसको ज़िन्दगी के किसी पड़ाव में अचानक से आवश्यकता हो।
पर जो भी उसे लेगा, जरुरत पूरी होने के बाद, उसे उस भाग को दुगना करना होगा। क्योंकि वो भाग मैंने आने वाली पीढ़ी के लिए रखा है, हमारे किसी भी ग़लत फैसले का असर उनके भविष्य पर नहीं पड़ना चाहिए।
पिता जी, जिसके इतने समझदार दादा जी हों उनका भविष्य हमेशा सुदृढ़ ही रहेगा। और ऐसे पिता जी को छोड़ कर जाने से बढ़कर, मूर्खता तो कुछ है ही नहीं। राजन ने गर्व से ओत-प्रोत होकर कहा।
मेरे जब भी बच्चे होंगे, उनके पहले गुरु आप ही होंगे। क्योंकि जिसके गुरु आप होंगे, उसे जिन्दगी में सच्ची जीत मिलेगी।
और हाँ आप जो बंटवारा कर रहे हैं, उसमें मेरे हिस्से में मुझे आप और माँ चाहिए।
बाकी आप जानिए...
राघव, राजन की बातें सुनकर शर्मिंदा हो गया। पर उसके बड़े शहर जाने की हूक नही मिटी। किशन सिंह जी ने राघव को उसका हिस्सा देकर शहर भेज दिया।
राघव अपनी पत्नी गीतिका के साथ शहर में आ गया। वहाँ आकर उन लोगों ने एक घर लिया, कुछ घर की व्यवस्था के सामान और खाने-पीने के बनाने और खाने का सामान लिया। कहीं आने-जाने के लिए एक bike ली। इस सबमें उन लोगों के बहुत सारे पैसे खत्म हो गये। अब चंद रुपए ही बचे थे।
वहाँ उनके जान-पहचान का कोई नहीं था। ना ही किसी को उनसे कोई मतलब था।
दोनों ही बहुत होनहार थे तो दोनों ही अपने-अपने field में job करने लगे।
चंद दिनों में ही दोनों इतने busy हो गये कि उन का आपस में मिलना मुश्किल होने लगा। क्योंकि गीतिका की morning shift थी और राघव की night.
बस एक Sunday था, जब दोनों साथ होते थे। उस दिन सोने और घर का सामान लाने में चला जाता था।
एक दिन, किशन सिंह जी ने, राघव को समाचार भेजा कि राजन के जुड़वां बच्चे हुए हैं। कुछ दिनों के लिए आ जाओ।
यह समाचार सुनकर दोनों खुशी से झूम उठे। दोनों ने अपने अपने office में छुट्टी के लिए बात की , पर राघव और गीतिका दोनों को ही मुश्किल से सिर्फ चार दिन की ही छुट्टी मिली। जब वो घर पहुंचे, घर मेहमानों से भरा था।
सबके साथ दोनों को बहुत अच्छा लगा, दोनों बच्चे चीकू-पीकू खूब सुन्दर और स्वस्थ थे।
गीतिका को देखकर सब बोल रहे थे कि, क्या हुआ है बिटिया, इतनी थकी हुई क्यों लग रही हो?
दिन भर काम करने, व अकेलेपन के कारण उसके चेहरे पर वो पहले सी रोनक नहीं रह गई थी।
गीतिका ने एक फीकी सी मुस्कुराहट दे दी।
मौसी सास तो पूछ भी बैठीं, अरे, तुम कब खुशखबरी दे रही हो?
यह सुन गीतिका, राघव को देखने लगी, राघव शांत रहा।
चार दिन बाद दोनों मेहमानों से भरे घर को छोड़कर जाने लगे तो सब बोले, लो जी क्या ज़माना आ गया है, घर वाले ही सबसे पहले चल दिए?
माफ़ कीजियेगा बुआ, इससे ज्यादा छुट्टी नहीं है। राघव दुःखी होते हुए बोला...
चाची ने मखौल उड़ाते हुए कहा, वाह! गांव के मालिक, शहर के नौकर हो गये। ऐसे मूर्ख हमने तो कहीं नहीं देखे।
राघव कुछ नहीं बोला, बस खून का घूंट पी कर रह गया, क्योंकि चाची सच ही कहा रही थी।
दोनों शहर लौट आए। गांव जाने के कारण, उनका work load बढ़ चुका था।
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