कहानी “गलत फैसला”, में हमने
adjustment की बात कही थी, तो किसी ने पूछा, adjustment का
क्या अर्थ है? ये
कविता वही बता रही है।
मैं तो हूँ नई नवेली
मैं तो हूँ नई नवेली
घर की रीति अपनी
मुझको तुम, बतलाओ
ना
क्या होता है घर में
सब धीरे धीरे
समझाओ ना
कुछ मनवा लेना
अपने मन की
कुछ मेरी भी
मानो ना
जुड़ गयी हूँ मैं भी
इस घर से
मुझको भी घर का
जानो ना
कुछ स्वाद का
खा लूँगी तेरा
कुछ मेरे स्वाद का
भी खालो ना
थाली पूर्ण हो जाएगी
एक बार कर डालो ना
कुछ पहनूँ मैं
तेरे मन का
कुछ पहने तू
मेरे मन का
प्रीत के रंग में
रंगे हुए हैं
दुनिया को दिखलाओ ना
छोड़ आई हूँ मैं
कुछ पीछे
हर पल यादें
मुझको खींचे
जुड़ते जुड़ते
जुड़ जाऊँगी
कुछ पल मुझको
दे डालो ना
मैं तो हूँ नई नवेली
घर की रीति अपनी
मुझको तुम बतलाओ ना
क्या होता है घर में
सब, धीरे
धीरे
समझाओ ना