मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-4) के आगे...
मेरी सास ही मेरी सांस (भाग-5)
बहू को बुला लूं? वो भी कहां जाना चाहती थी... फिर मन बदल लिया, अगर बेटे-बहू को पता चलेगा तो बहू वापस आ जाएगी, फिर उनके वैवाहिक जीवन का क्या होगा...
रैना, संयम के साथ दिल्ली पहुंच गई । घर पहुंच कर सामान set करने में उसने सबसे पहले मंदिर स्थापित किया। फिर सारे सामान set किए।
अगली सुबह, रैना चार बजे ही नहा-धोकर पूजा अर्चना करने लगी। घंटी की आवाज से संयम की नींद खुल गई।
अरे रैना, रात से ही तुमने क्या शुरू कर दिया?
रात कहां, चार बज गए हैं, पूजा अर्चना का समय हो गया है। संयम बोला, क्या हो गया है तुम्हें ?
कुछ नहीं, और यह कहकर वो पूजा पाठ में मग्न हो गई।
अब तो जो त्यौहार आता रैना, मां से पूछकर, सब कुछ बहुत विधि-विधान से करती।
संयम, रैना से बोलता भी, मां कौन सा यहां हैं जो तुम इतना टिटींबा पाल लेती हो...
रैना हर बार, बस एक बात ही बोलती, मुझे मां ने अपने विश्वास पर दिल्ली भेजा है, तो मैं उसे कैसे तोड़ सकती हूं? तुमने मुझे से पहली रात को ही कहा था कि मां का बहुत मान है और वो मेरे कारण कम नहीं होना चाहिए...
तब से वो बात, मेरे लिए हर बात से पहले रहती है...
संयम बोलता तो जरूर था, पर रैना का घर के रिति-रिवाजों को मानते रहना, कहीं ना कहीं उसे अच्छा बहुत लगता था।
इधर रैना अपनी सास पर और गायत्री जी अपनी बहू पर जान छिड़कती थीं।
जब भी वो लोग घर पहुंचते, उनके स्वागत के लिए बहुत लोग हमेशा घर पर मौजूद होते थे। क्योंकि मां 15 दिन पहले से ही सबको बताने लगती थी कि उनका बेटा-बहू घर आ रहे हैं। वो 15 दिन पहले से ही बेटा-बहू के आने की तैयारी में जुट जातीं।
घर में जब भी रैना और संयम पहुंचते हमेशा VIP वाली feelings आती। मां के हाथों से बने ढेरों पकवान खाने के बाद तो उनका लौटने का मन ही नहीं करता, पर आना भी जरूरी था संयम के लिए।
कुछ दिनों बाद, रैना मां बनने वाली थी। रैना ने कहा कि मैं घर जाऊंगी, संयम ने उसके मायके का टिकट करा दिया। रैना ने कहा नहीं, मैं मां के पास रहूंगी, अभी बच्चे के लिए उनसे अच्छा कोई नहीं।
गायत्री जी ने बड़े लग्न से रैना के वो चालीस दिन पूरे किए। उसे एक कदम नीचे नहीं रखने दिया। रैना के खान-पान से लेकर बच्चे और रैना के हर तरह के काम और देखभाल की। सभी काम पूरे नियम कानून से ही किए।
दूसरे बच्चे के समय, रैना घर नहीं जा पाई तो, गायत्री जी सारे तामझाम के साथ उन लोगों के पास पहुंच गईं और सभी काम पूरे नियम कानून से ही किए। किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी।
उनके जाने के बाद कुछ दिन के लिए, रैना की मम्मी आईं।
उन्होंने रैना से कहा कि, बेटा दूसरे बच्चे के समय मुझे बुला लेती...
रैना ने कहा, मां मैं आज आपको एक बात बताती हूं, मेरी सुहागरात में जब संयम ने कहा कि मुझे सुबह चार बजे उठना है, मुझे तुम पर और पापा पर बहुत क्रोध आया था कि मेरी शादी कैसी जगह कर दी, इतनी पूजा पाठ भी किसलिए? और ऊपर से यह कहकर भेज दिया कि वहीं के रंग में रंग जाना।
पर मैं धीरे धीरे इस घर में रमती गई और साथ ही जानती गई कि मेरी सास कितनी अच्छी हैं। मां मैं कब उन जैसी बन गई, मुझे पता ही नहीं चला।
अपने ससुराल में हमारा हमेशा भव्य स्वागत होता है, वो नहीं होती तो कैसे होता? कैसे 15 दिन पहले से हमारे आने की सबको ख़बर होती? कैसे हम मां के हाथों के इतने पकवान खाते।
मां, मुझे पता ही नहीं चला, कब मेरी सास ही मेरी सांस बन गईं, मुझे उनके बिना अपनी जिंदगी ही संभव नहीं लगती है।
मां इसके लिए आप और पापा का भी thank you...
क्योंकि आप ने रमने को ना कहा होता तो, अपने घर से बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में, मैं शायद ढल नहीं पाती...
बेटी, हम जहां भी रहें, अगर वहां कि परिस्थितियों में ढल गए, तभी जीवन सुखद लगता है। और जब बात दो लोगों के बीच के सामंजस्य की हो तो, कोशिश दोनों तरफ से होने से ही संबंधों में प्रगाढ़ता आती है, प्रेम बढ़ता है।
मुझे गर्व है कि मेरी बेटी सुख दे भी रही है और पा भी रही है...
आज की कहानी, पुराने जमाने की नहीं बल्कि आज के ही परिवेश की है, यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं,वास्तविक कहानी है। यह कहानी एक सफल सास-बहू के ताने-बाने की कहानी है जो एक दूसरे के पूरक बन गये...
उन दोनों को ही मेरा प्रणाम 🙏🏻