अब तक आप ने पढ़ा, अनहद नाद (भाग-1), अनहद नाद (भाग -2), अनहद नाद (भाग-3) व अनहद नाद (भाग -4).....
अब आगे........
अनहद नाद (भाग - 5)
आंटी का हाथ थामे बाहर निकलेI मेरे क़रीब आयेI
मैं शून्य थीI मेरी आँखें नम थींI अंकल ने मेरे सिर पर हाथ रखाI उनका हाथ रखते ही मेरा दिल भर आयाI मैं कुछ कह पाती उससे पहले ही वो बोल पड़े-
“ये हमारी ज़िन्दगी का तीसरा दौर शुरू I”
और फिर वो अपने घर से दूर बाहर गेट की तरफ़ चल दिएI सबसे वैसे ही मिले जैसे रोज़ हँसते-मुस्कुराते हुए मिलते थेI किसी को भनक भी नहीं लगी कि पिछली रात उनके साथ क्या हुआ और अगली बार वो कब मिलेंगेI अब उनके चेहरे पर वो तनाव नहीं था, वो हताशा नहीं थेI वो आंटी जी का हाथ थामे अपनी ज़िन्दगी के तीसरे पड़ाव की ओर चल दिएI मैं उन्हें जाते हुए तब तक देखती रही जब तक वो मेरी आँखों से ओझल नहीं हो गएI
मैंने वापस अपने घर की ओर रुख किया तो महसूस किया कि मैं चल नहीं पा रहीI मेरे पैर डगमगा रहे थेI किसी तरह मैं लडख़ड़ाते हुए अपने घर के दरवाज़े तक पहुँची और दरवाज़ा खटखटायाI
मेरी छोटी बहन ने दरवाज़ा खोलाI मैं अंदर गईI देखा माँ खाना बना रहीं हैं, पिताजी अख़बार पढ़ रहे हैं, बड़ा भाई चाय पी रहा है और छोटी बहन चहल पहल कर रही हैI
मैं चारों तरफ़ अपने रिश्तों को सवालिया नज़र से देख रही थी और अपने विश्वास को ढूँढ रही थीI
मैं किसी से कुछ कहे बिना अपने कमरे में आ गईI बेचैन मन से बिस्तर पर लेट गईI मुझे अब नींद नहीं आ रही हैI बस अंकल की कही बातों ने मेरे दिलो दिमाग़ पर एक छाप छोड़ दीI
उनके विश्वास और दिल के टूटने की आवाज़ मैं अभी भी महसूस कर रही हूँI
क्या सच में अपने लिए जीयूं, अपनों के लिए नहीं…………..?