रिश्तों की हद
श्यामली और तरुण की नई-नई शादी हुई थी। दोनों को ही एक दूसरे का साथ बेहद पसंद था।
शादी के बाद दोनों एक-दूसरे में ऐसे खोए कि दोनों को ही घर-परिवार से कोई मतलब नहीं रहता। ना किसी से मिलना, ना किसी से फोन पर बात करना। दिन भर मौज-मस्ती, बस यही ध्येय बना लिया था उन दोनों ने।
और इस बात में इजाफा तब से और ज्यादा हो गया, जबसे अपने जैसे ही दोस्त बना लिए। पहले तीज़-त्यौहार, Birthday-Anniversary में तो घर-परिवार में बात कर भी लेते थे। पर अब तो मिलना तो दूर, महीनों हो जाते थे, किसी से फोन पर बात करें हुए भी।
पर इस बात का, श्यामली और तरुण को लेश मात्र भी दुःख नहीं था।
जिंदगी सुकून से कट भी रही थी।
एक दिन तरुण का road accident हो गया, श्यामली और दोस्त लोग उसे लेकर अस्पताल पहुंच गए।
Knee fracture हो गया था। Doctor ने तुरंत operation बोल दिया था। सुनकर श्यामली के हाथ-पांव फूल गए।
श्यामली की दोस्त रितिका बोली, श्यामली, तुम घर में सबको बता दो, कोई घर से आ जाएगा...
और हाँ घबराना नहीं, उनके आने तक हम सभी दोस्त तुम्हारे साथ हैं, तुम्हें कभी अकेला नहीं लगने देंगे।
श्यामली बोली, रितिका जब तुम लोग हो तो, किसी और की क्या जरूरत?
तुम लोगों से अच्छा हमारे लिए क्या कोई और होगा?
फिर हमारी सोच भी मिलती है। हम कितने sort and cool हैं... कौन उन लोगों को बुला कर झंझट ले। फिर आज वो आएंगे तो कल उनको जब जरुरत हो, तो उनके में हमें जाना होगा...
कौन इतना झंझट पाले?..
जरुरत में तो हम भी एक दूसरे के काम आते हैं, वो क्या यह झंझट है श्यामली, रितिका ने प्रश्न किया?
नहीं रितिका मेरे कहने का मतलब तुम समझी नहीं...
क्या मतलब है तुम्हारा श्यामली?
आगे पढ़ें, रिश्तों की हद (भाग -2) में..