Saturday 21 November 2020

Story of Life : दस्तक ( भाग -4)

दस्तक (भाग-1)दस्तक ( भाग -2) और दस्तक ( भाग -3) के आगे.....


दस्तक ( भाग -4)




अपने को मत कोसो निखिल, अभी घबराने से या परेशान होने से काम नहीं चलेगा।

बहुत तेज और शातिर सोच रखनी होगी, संभारा जैसी।

तुम ही सोचो, मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा है।

तभी नेहा को याद आया, जुगना माई उसे देखकर, उल्टा उल्टा बोल रही थी, कहीं वो उसे रास्ता तो नहीं सूझा रही थी।

नेहा ने निखिल से कहा कि जैसा shopkeeper बोला था, उसके opposite direction में चलो।

निखिल ने bike घुमाई और उल्टी दिशा में दौड़ा दी।

कुछ ही देर में पक्का रास्ता दिखने लगा था। वो थोड़ा और बढ़े, तो traffic भी दिखने लगा, उनके जान में जान आई।

नेहा की बुद्धि और जगुना माई की कृपा से वो उस जगह से बाहर निकल आए थे।

रास्ता पूछते पूछते वो अपने घर लौट आए।

रात के 11 बज चुके थे, duplicate key से जब वो अंदर आए तो उन्हें देख कर बच्चे कहने लगे, आप हमें छोड़कर कहाँ चले गए थे?

ऐसा क्या लेने गए थे, जो इतनी रात में घर आए हैं?

निखिल और नेहा के पास बच्चों कि बात का कोई जवाब नहीं था।

बच्चों तुम लोगों Maggi खाकर सोए क्यों नहीं?

हमने कुछ नहीं खाया, आप लोगों के बिना हमें कुछ अच्छा नहीं लगता है।

नेहा ने फटाफट सबके लिए  पुलाव बनाया, जिसे खाकर सब सो गए।

अगले दिन नेहा ने कहा, क्या करना है उस दस्तक का? 

नाम ना लो उसका, वो भयानक रात, मैं हमेशा के लिए भूल जाना चाहता हूँ।

और खूबसूरत संभारा को? नेहा निखिल को चिढ़ाती हुई बोली।

तुम से खूबसूरत और समझदार दुनिया में और कोई नही।

अच्छा जी.......