लता दी, एक स्वर युग...
लता दी, भारत की स्वर कोकिला, जिनकी सुरीली आवाज़ से भारत गूंजायमान हो गया था। उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया है, पर उनके स्वर और सुरीली आवाज़, भारत के कण-कण में समाहित थे, हैं और रहेंगे।
उनके पिता जी (दीनानाथ मंगेशकर) बहुत बड़े मराठी theatre actor, Hindustani classical vocalist थे। उनके पास बहुत से शिष्य, संगीत का ज्ञान लेने के लिए आते थे। एक बार एक शिष्य को पिता जी, बहुत ही कठिन, राग पूरिया धनाश्री (जो कि एक सायंकालीन संधि प्रकाश राग है) सिखा रहे थे और लता दी, जो कि मात्र 5 साल की थी, कमरे के बाहर खड़ी सुन रहीं थीं।
जब पिता जी, किसी काम से बाहर गए, लता दी अंदर जाकर बोलीं, बाबा ऐसे नहीं, ऐसे गाते हैं। पिता जी ने लता दी को पहली बार गाते हुए सुना था। वो बहुत प्रसन्न हुए और तभी से उनकी दीक्षा, पूरिया धनाश्री राग के साथ ही प्रारंभ कर दी।
जब वो 9 साल की थीं, पिता जी के साथ stage performance देने लगीं।
मात्र 13 साल की उम्र में उनके सिर से पिता जी का साया उठ गया। और सम्पूर्ण परिवार की जिम्मेदारी उनके नन्हे कंधों पर आ गई। जिसे उन्होंने बखूबी निभाई।
अतः 13 साल की उम्र से ही लता दी ने playback singing शुरू कर दी।
उस समय से प्रारम्भ हुआ उनका career, 7 दशकों तक बुलंदी पर रहा, उसके बाद, गीतों के गिरते स्तर के कारण, उन्होंने बहुत चुनिंदा गीतों को ही अपनी आवाज़ दी।
लता दी को स्वर कोकिला क्यों कहा गया, उसके पीछे का कारण यह है कि संगीत के प्रति ऐसी लहर आजादी से पहले नहीं थी। उस समय गाने तो लिखे जाते थे लेकिन ऐसा कंठ नहीं था जो इन गानों को एक ऊंचाई दे सके। तब प्रदार्पण हुआ सुर कोकिला लता मंगेशकर का, जिनके गाए गानों में आम आदमी से लेकर अपने क्षेत्र के शिखर पर बैठे हर व्यक्ति तक की भावनाओं को आवाज मिली।
जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती रही, उनकी आवाज़ का जादू भी दिनों-दिन परवान चढ़ता रहा। उनकी बढ़ती उम्र का प्रभाव कभी भी उनके संगीत के आड़े नहीं आया।
उस आवाज़ में जो कशिश थी, जो अल्हड़ जवानी थी, जो सुरीला सुर था, वो उनके हर गीत को बेमिसाल बनाता था।
उनके लिए, बड़े-बड़े गायक कहा करते थे कि यह आवाज़ तो कभी बेसुरी होती ही नहीं है।
उनके गाये पहले गीत "पांव लगूं कर जोरी" से अंतिम गीत, "लुका-छिपी" तक के सभी गीतों में उनकी आवाज़ का जादू चढ़ता ही गया।
उनके गीत, हर्ष में, विषाद में, भक्ति में शक्ति में, प्रेम में, परिहास में सभी रंगों में रंगे थे।
उनके गाए गीतों से बच्चों को सोते से उठाते हैं, "जागो मोहन प्यारे" ईश्वर की प्रार्थना करनी हो तो, " हम को मन की शक्ति देना" बच्चों को शिक्षा देनी हो तो," बच्चे मन के सच्चे", जब उन्हें सुलाना हो, "आ जा रही आ, निंदिया तू आ", जवां हो जाएं तो, " सोलह बरस की बाली उमर को सलाम", "जब प्यार किया तो डरना क्या",मन की तमन्नाओं को उड़ान देनी हो तो, " आज फिर जीने की तमन्ना है", जब दिल टूट जाए तो,"अजीब दास्तां है ये", बीता ना बिताए रैना, "तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं", और जब प्यार वापस आ जाए तो, "बाहों में चले आओ", जब देश भक्ति जागे तो"ए मेरे वतन के लोगों", और जब परिपक्वता आ जाए तो, तेरे लिए हम हैं जिए". इसलिए लता दी, आदि भी हैं और अनंत भी... या यूं कहें कि वो अलौकिक हैं।
यही कारण था कि लता मंगेशकर, लता दी बनकर सबके दिलों में उतर गई और सबकी लता दी बनकर उनसे संगीत का मीठा रिश्ता बना लिया।
लता दी हमेशा चप्पल उतार कर ही गीत गाती थीं, उनके लिए गीत गायन, ईश्वरीय भक्ति थी, साधना थी, अराधना थी और जहाँ ईश्वर का साथ हो, वहाँ सफलता सिद्धी बन जाती है।
उन्होंने, विभिन्न भारतीय भाषाओं में 30,000 से अधिक गाने गाए हैं। अपने सात दशकों से अधिक के career में उन्होंने ‘जरा आंख में भर लो पानी’, ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’, ‘अजीब दास्तान है ये’, ‘तुझे देखा तो यह जाना सनम’, ‘हमको हमीं से चुरा लो’, "जब प्यार किया तो डरना क्या’, ‘नीला आसमां सो गया’ और ‘तेरे लिए’ जैसे कई यादगार tracks को अपनी आवाज दी है.।मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार सहित कई singers के साथ उन्होंने कई सदाबाहर गाने दिए।
वह भारत के तीनों सर्वोच्च नागरिक सम्मान (भारत रत्न, पद्म भूषण और पद्म विभूषण) सहित तीन राष्ट्रीय और चार फिल्मफेयर पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी हैं।
उन्हें साल 1989 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। साल 2001 में लता मंगेशकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' दिया गया था।
आज स्वर साम्राज्ञी लता दी, हमारे बीच सशरीर नहीं हैं, पर अगर उन्हें संगीत जगत का स्वर युग कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
अपने हजारों गानों के माध्यम से वो अमर आवाज़ हमेशा हम सब के साथ रहेगी, उनकी याद बनकर, उनकी पहचान बनकर...
और उनका जीवन संघर्ष और परिवार के लिए समर्पण, सबको प्रेरित करेगा, सफलता की बुलंदियों को छूने के लिए...
उनके बहुत से अमर गीतों में से:
ऐ मेरे वतन के लोगों...
रहे ना रहें हम, महका करेंगे...
मेरी आवाज़ ही पहचान है...
इन गीतों ने उन्हें बहुत पहले ही अमर कर दिया था।
आज लता दी, एक स्वर युग को कोटि-कोटि प्रणाम और अश्रूपूरित श्रद्धांजलि 🙏🏻💞