Wednesday 16 February 2022

Article : गो-काष्ठ

 गो-काष्ठ 




आज भारत बहुत से ऐसे क्षेत्रों में भी आगे बढ़ रहा है, जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

आज मैं आपको उसी से सम्बंधित बात बताने जा रहे हैं। वैसे इस बात से कुछ लोग अवगत भी हैं, पर फिर भी बहुत लोग अनभिज्ञ भी होंगे। 

मेरा इसको बताने का बड़ा कारण यह है कि शायद इसे पढ़कर कुछ लोग को रोजगार करने और देने का idea मिल जाए।

अपनी उस बात को बताने से पहले मैं आप से पूछना चाहती हूँ कि आप में से कितने लोग के लिए गाय एक आदरणीय पशु है?

या यह कि गाय को सबसे पवित्र पशु क्यों समझा जाता है?

चलिए हम अपनी धारणा आप के सामने रखते हैं कि हमारे लिए गाय आदरणीय व पवित्र पशु है।

इसके बहुत से कारण हैं, जैसे -

पहला कारण है कि माँ के बाद अधिकांशतः लोग गाय का दूध पीकर ही बड़े होते हैं, अतः गाय को माता, के समकक्ष माना गया है।

दूसरा कारण, गाय के मूत्र में बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं, अतः आयुर्वेद में गौमूत्र की विशेष महत्ता है।

तीसरा कारण, गाय द्वारा दिए गए गोबर की महत्ता का तो कहना ही क्या है। जब भारत आधुनिकता की ओर अंधी दौड़ में शामिल नहीं था, तब हर कच्चे घरों में गाय के गोबर से हर दूसरे चौथे दिन लीपा जाता था, जिससे लोगों के घर कीड़े-मकोड़े से मुक्त रहता था।

गाय के गोबर की पवित्रता तो इस हद तक मानी जाती है कि पूजा अर्चना में भी इसका प्रयोग किया जाता है। गोबर से बनी हुई गौरा देवी की पूजा घर घर में होती है।

सदियों से घरों में गोबर से बने कंडे (उपला) का उपयोग खाना बनाने के लिए किया जाता रहा है, हालांकि शहरों में गैस का प्रयोग दशकों पहले से आरंभ हो गया है और आज कल उपलों का प्रयोग केवल गांवों तक ही सीमित रह गया है। बल्कि बहुत से गांवों में भी गैस सिलेंडर की सेवा उपलब्ध कराई जा रही है, वहीं कुछ गांवों में गोबर गैस प्लांट भी लगे हुए हैं, जिससे घर-घर में गैस की सुविधा उपलब्ध हो रही है।

आज हम गोबर की इसी विशेषता से जुड़ी एक और कड़ी की बात कर रहे हैं।

अभी कुछ दिन पहले हमें गौकाष्ठ के विषय में ज्ञात हुआ।

देश के विभिन्न शहरों की संस्थाओं द्वारा, गाय के गोबर से गोकाष्ठ बनाए जा रहे हैं, अब आप कहेंगे कि यह गो काष्ठ क्या है?

गो-काष्ठ

इसमें गाय के गोबर को एकत्र कर के उसे सुखाया जाता है। फिर उसमें उचित मात्रा में पानी डालकर मिक्स करते हैं। तब इसे machine में डालकर अच्छे से compress करते हैं, और उससे logs निकालते हैं। इन logs को सूखा लेते हैं। इसमें बीच में 1 Inch का छेद होता है, जो इसे जल्दी सूखने में मदद करता है, साथ ही इसमें छेद होने से यह एकसार जलती है। देखने में यह लकड़ी के लठ्ठे (logs ) के जैसे ही लगते हैं। यह लकड़ी के जैसे दिखते हैं और गोबर से बने होते हैं, इसलिए ही इन्हें गोकाष्ठ कहते हैं।

इस काम को करने में 3 से 4 आदमी की आवश्यकता होती है। 

राजस्थान में, गोबर में गंगाजल, गोमूत्र, पंचगव्य, हवन सामग्री, चंदन की लकड़ी के बुरादे, पेड़ों के सूखे पत्ते आदि सामग्रियों को मिलाकर एक मशीन में मिलाकर लकड़ी तैयार की जा रही है। अतः यह बहुत पवित्र और पूजनीय हो जाती है।

गो-काष्ठ का उपयोग 

और इन गोकाष्ठ को हम उन सब जगह पर use कर सकते हैं, जहांँ लकड़ी का use किया जाता है। 

  • जहाँ अभी भी भोजन के लिए लकड़ी को use किया जाता है। 
  • Comercial use जैसे ईंट भट्टे में, या जिस भी काम में furnace use करते हैं
  • Outing के लिए गये हों तो bonefire में।
  • बहुत से त्यौहारों में, जैसे होलिका दहन, लोहड़ी आदि में।
  • पूजा अर्चना में हवन के लिए साथ ही अंतिम संस्कार में भी।


आप कहेंगे कि जब लकड़ी है तो इसकी क्या आवश्यकता?

आप स्वयं बताइएगा कि आवश्यकता है कि नहीं, 

गो-काष्ठ की आवश्यकता

इस गो काष्ठ के होने से एक नहीं कई फायदे हैं- 

  1. गो काष्ठ को लकड़ी की तरह use कर सकते हैं, अतः इनके होने से बेवजह लकड़ी की कटाई बंद हो जाएगी, जिससे वन संरक्षण होगा।
  2. गो-काष्ठ, गोबर से बनता है, अतः यह भी पूरी तरह natural है।
  3.  यह गोबर को सुखाकर व पूरी तरह compressed करके बनाते हैं, अतः इससे लकड़ी के competitively कम प्रदूषण होता है। अतः वातावरण भी शुद्ध।
  4.  गोबर का सदुपयोग होने से वो waste बनकर जगह नहीं घेरता है।
  5.  जो गाय दूध देना बंद कर देती हैं, उन्हें लोग अपने पास रखना पसंद नहीं करते हैं, जिसके कारण वह भूख और देखभाल से तरसने लगती हैं।  
  6.  उनके यहाँ वहाँ घूमने से उनके व बाकी लोग के accident की chances रहती है, साथ ही उनके यहां-वहां घूमने से गोबर भी इधर उधर फैल कर गंदगी करता है।
  7.  गो काष्ठ की प्रसिद्धी बढ़ने से, गाय के दूध के साथ ही गोबर भी मूल्यवान हो गया। इससे लोग गाय की सेवा करते रहेंगे। इससे गाय सुरक्षित व जगह स्वच्छ। 
  8. लकड़ी के लठ्ठे से कम मात्रा में गोकाष्ठ की आवश्यकता पड़ती है, जिसके कारण खर्चे में भी नियंत्रण रहेगा।
  9. गो-काष्ठ से अन्त्येष्टि करने में केवल 300 किलोग्राम गोकाष्ट एवं 250 ग्राम कपूर का उपयोग होगा। इसकी कुल लागत 1600 रुपए आएगी। जबकि, एक शव की अन्त्येष्टि में 2 पेड़ समाप्त हो जाते हैं, और इससे लगभग 5 हजार से 6 हजार तक का खर्च आता है 
  10. अब आप का क्या कहना है? शायद आप के मन में भी यही ख्याल आया होगा कि यह मिलती कहाँ है?
  11. यह आप को बहुत easily सभी States में मिल जाएगी, इसकी कीमत लगभग 45,000 से 55,000 तक की आप को मिल जाएगी। अगर आप के पास गौशाला है या आप के आसपास गौशाला है तो इस मशीन के जरिए आप अच्छी आमदनी भी कर सकते हैं। 

अगर आप के पास मशीन खरीदने जितने पैसे नहीं हैं, तो आप इस सांचे की मदद से भी गो-काष्ठ  बना सकते हैं।


तो आइए, लकड़ी की जगह, इस गो काष्ठ को अधिक से अधिक use कर के पर्यावरण, पेड़, वन व गौ, इन सबकी रक्षा की ओर अग्रसर हो जाएं।