जिस monsoon का इंतज़ार था, वो अठखेलियां करता, घर-आंगन, खेत-खलिहान, भिगा रहा है, हर ओर छाई है हरियाली, धरती को खुश्बू से महका रहा है।
पानी की बूंदें, जब धरा पर पड़ती है, उस समय मिट्टी की जो सौंधी-सी खुश्बू आती है, वो रोम-रोम को प्रफुल्लित कर देती है।
उसी भाव में रची-बसी आज की कविता है, रिमझिम बारिश के स्पर्श के साथ आइए, इस कविता का आनंद लेते हैं…
पूर्ण धरा हो जाती है
बूंद गिरती,
जो वसुधा पर,
सौंधी-सी,
खुश्बू आती है।
उस सौंधी-सी,
खुशबू के संग,
पूर्ण धरा हो जाती है।।
नवांकुर को,
उस अमृत से,
सींच कर,
जीवन नया दिलाती है।
उस सौंधी सी,
खुशबू के संग,
पूर्ण धरा हो जाती है।।
हर ओर,
उमंग संग,
पृथ्वी हर्षाती,
मुस्काती है।
उस सौंधी-सी,
खुशबू के संग,
पूर्ण धरा हो जाती है।।
लहराता है,
हरियाली का आंचल,
पुष्पों की भीनी-सी,
सुगंध आती है।
उस सौंधी-सी,
खुशबू के संग,
पूर्ण धरा हो जाती है।।
Happy monsoon season 💦